प्रकाश से भी तेज़ गति से होगी बात?

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प्रकाश से भी तेज़ गति से होगी बात?

प्रकाश की गति इतनी ज्यादा होती है कि यह लंदन से न्यूयार्क की दूरी को एक सेकेंड में 50 से ज़्यादा बार तय कर लेगी.

लेकिन मंगल और पृथ्वी के बीच (22.5 करोड़ किलोमीटर की दूरी) यदि दो लोग प्रकाश गति से भी बात करें, तो एक को दूसरे तक अपनी बात पहुंचाने में 12.5 मिनट लगेंगे.

वॉयेजर स्पेसक्राफ्ट हमारी सौर व्यवस्था के सबसे बाहरी हिस्से यानी पृथ्वी से करीब 19.5 अरब किलोमीटर दूर है. हमें पृथ्वी से वहाँ संदेश पहुँचाने में 18 घंटे का वक्त लगता है.

इसीलिए प्रकाश से ज्यादा गति में संचार के बारे में दिलचस्पी बढ़ रही है. जी हाँ, अचरज तो होगा पर वैज्ञानिक अब इस दिशा में काम करने में जुटे हैं.

अंतरिक्ष में ख़ासी दूरियों के कारण यदि संदेश प्रकाश की गति से भी भेजा जाए तो उसे एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचने में समय लगता है.

भौतिक विज्ञान क्या कहता है?

वैसे प्रकाश से अधिक गति का संचार भौतिक विज्ञान के स्थापित नियमों को तोड़े बिना संभव नहीं है.

लेकिन इस दिशा में कोशिश शुरू हो चुकी है, जिसमें प्रकाश से भी तेज़ गति से संचार को संभव माना जा रहा है.

अब तक इस गति को हासिल करने की जरूरत महसूस नहीं होती थी. मनुष्य ने सबसे ज्यादा दूरी चंद्रमा तक तय की है करीब 384,400 किलोमीटर.

प्रकाश को ये दूरी तय करने में महज़ 1.3 सेकेंड का वक्त लगता है.

अगर कोई चंद्रमा से प्रकाश की गति से संचार करे तो इतना ही वक्त लगेगा. अंतर ज्यादा नहीं है, इसलिए इस मामले में तो प्रकाश से ज्यादा की गति से संचार करने या नहीं करने से फर्क नहीं पड़ता.

लेकिन अगर हम मंगल तक की दूरी तय करें, तो फर्क समझ में आता है. सौर व्यवस्था के बाहरी क्षेत्र में मौजूद वॉयेजर से भी संपर्क साधने के समय प्रकाश से तेज़़ गति से संचार की बात समझ में आती है.

सबसे नजदीकी तारा मंडल अल्फ़ा सेटॉरी पृथ्वी से 40 ट्राइलियन किलोमीटर दूर है. वहां के संदेश को पृथ्वी तक पहुंचने में 4 साल का वक्त लगता है. ऐसे में परंपरागत संचार व्यवस्था बहुत उपयोगी नहीं है.

आइंस्टाइन को ग़लत साबित करेंगे?

आइंस्टाइन के सापेक्षता के सिद्धांत के मुताबिक चीजें ऐसी ही रहेंगी. आइंस्टाइन की स्पेशन थ्यूरी ऑफ़ रेलेटिविटी के मुताबिक कोई भी चीज़ प्रकाश से तेज़ गति से गतिमान नहीं हो सकती.

ऐसा इसलिए, क्योंकि प्रकाश की गति सर्वमान्य नियतांक (कॉन्स्टेंट) है.

कैलिफोर्निया इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नालॉजी की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के लेस ड्यूश ने नासा के स्पेस टेलीकम्यूनिकेशन सिस्टम में सालों तक काम किया है. ड्यूश कहते हैं कि सूचना के सिद्धांतों का उल्लंघन करने और भौतिक विज्ञान के मूलभूत सिद्धांतों के बारे में फिर से सोचने की जरूरत है.

आज अंतरिक्ष में सभी परंपरागत संचार रेडियो तरंगों की मदद से होता है, जो निर्वात (वैक्यूम) में प्रकाश की गति से दूरी तय करता है. आप्टिकल लेज़र सूचना तकनीक का इस्तेमाल शुरू हुआ है लेकिन अभी ये विकास के चरण से ही गुज़र रहा है.

हम संचारण की गति को नहीं बढ़ा सकते लेकिन हम प्रति सेकेंड भेजे जानी वाली सूचनाओं का वोल्यूम बढ़ा सकते हैं. ड्यूश कहते हैं, "हम करियर फ्रीक्वेंसी को हाई स्पेक्ट्रम की ओर बढ़ा रहे हैं, आठ गीगा हटर्ज से 30 गीगा हटर्ज तक." सिग्नल की फ्रीक्वेंसी ज्यादा होने पर उसका बैंडविथ भी ज्यादा होगा और प्रति सेकेंड ज्यादा सूचनाओं को भेजना संभव हो पाएगा.

 

हालांकि भविष्य में ऐसे रास्तों का निकलना संभव है जिससे संदेशों की गति और भी बढ़ाई जा सकती है. ड्यूशे ने कहा, "सापेक्षता के सिद्धांत में वर्महोल जैसी चीज की गुंजाइश होती है. जिससे आप स्पेस टाइम कम कर सकते हैं और शार्टकट अपना सकते हैं."

तो वर्महोल और शार्टकट क्या है?

वर्महोल को समझने के लिए एक सादे पेपर पर दो बिंदू बनाइए. दो बिंदू के बीच सबसे न्यूतम दूरी को दर्शाने के लिए आप एक सीधी रेखा खिंचते हैं. ये सबसे न्यूनतम दूरी होगी.

लेकिन पेपर मोड़ने पर संभव है कि दोनों बिंदू के बीच की दूरी और भी कम हो जाए. हो सकता है कि दोनों बिंदू एक दूसरे के पीछे हो जाएं. अंतरिक्ष में इस तरह की पोज़िशनिंग संभव नहीं है. लेकिन ऐसा हो जाए तो इससे संदेशों का स्पीड बढ़ सकती है लेकिन संचार तब भी तात्कालिक नहीं होगा.

प्रकाश से तेज़़ गति से संचार के लिए दूसरे विकल्पों पर भी विचार किया जा रहा है. इसमें से एक है क्वांटम इनटेनग्लमेंट- ये एक विचित्र गुण है, जिसमें दो पार्टिकल अपने गुणों को शेयर कर सकते हैं भले उनके बीच की दूरी कितनी भी क्यों ना हो.

टेलेस्पाजियो वीईगा ड्यूशलैंड के स्पेसक्राफ्ट ऑपरेशंस इंजीनियर एड ट्रोलोपे कहते हैं, "क्वांटम इनटेंग्लमेंट के ज़रिए एक दूसरे से अलग दो कणों में अगर एक कण में बदलाव संभव है तो दूसरे की स्थिति में भी बदलाव होगा. दो इनटेंग्लड पार्टिकिल्स के बीच तत्काल संचार की बात आकर्षक है."

लेकिन यह इतना आसान नहीं है. अगर आपके पास इनटेंग्लड पार्टिकिल्स का एक जोड़ा हो तो एक पार्टिकल स्पेस में हमारे सौर मंडल के सबसे बाहरी हिस्से में हो सकता है और दूसरा पृथ्वी पर. ऐसे में अंतरिक्ष के पार्टिकल में कोई बदलाव का असर उसके दूसरे हिस्से पर पृथ्वी पर पड़ेगा वो भी तुरंत.

लेकिन ट्रोलोपे के मुताबिक पृथ्वी के कण की निगरानी करने वाले को इन बदलावों का पता नहीं चलेगा जब तक उसे स्पेसक्राफ्ट से संदेश नहीं मिलेगा और ये संदेश प्रकाश की गति से तेज़़ रफ़्तार से नहीं मिलेगा. यानी क्वांटम इनटेंग्लमेंट के रास्ते प्रकाश से तेज़़ गति को हासिल कर पाना संभव नहीं दिख रहा.

इस मुश्किल से पार पाना संभव?

इसके अलावा कुछ काल्पनिक कणों के अस्तित्व को लेकर भी बात हो रही है. स्टार ट्रेक में जैसा दिखाया गया, टैकयोन्स का अस्तित्व संभव है.

सापेक्षता का सिद्धांत भी इसके अस्तित्व को खारिज नहीं करता- ऐसे में वास्तव में अगर ऐसा कण हो जो प्रकाश की गति से भी तेज़़ चलता है तो भी ये जाहिर नहीं होता कि प्रकाश की गति से तेज़ रफ़्तार से संचार संभव होगा.

ट्रोलोप कहते हैं, "हो सकता है कि उन कणों की गति प्रकाश से भी तेज़़ हो लेकिन वे आपस में इंटरेक्ट तो नहीं करते." इंटरएक्टिव नहीं होने की वजह से ये कण भी संचार में उपयोगी साबित नहीं होगा.

वैसे अगर प्रकाश से तेज़ गति से संचार संभव हुआ तो इसका अंतरिक्ष के मिशन पर बहुत गहरा असर होगा.

ट्रोलोप कहते हैं, "रोसेटा (यूरोपियन स्पेस एजेंसी) की जांच के दौरान हमें कोई जानकारी प्रकाश की गति से 30-40 मिनट के बाद मिलता है, ये मिशन को डिजाइन करने और ऑपरेट करने पर असर डालता है. "

वो कहते हैं, "अगर पृथ्वी की कक्षा में कोई सेटेलाइट है और तो उससे जानकारी पृथ्वी पर संदेश मिलने में 30 मिनट लगते हैं. फिर जो कमांड पृथ्वी से दी जाती है, उसे सेटेलाइट तक पहुँचने में 30 मिनट और लगते हैं. यानी, पृथ्वी से कमांड को अंजाम देने में कुल एक घंटे का वक्त लग जाता है."

ऐसे में ना तो क्वांटम इनटेंग्लमेंट और ना ही टैकयोन्स के ज़रिए प्रकाश की गति से तेज़ रफ़्तार संभव है.

ऐसे में वर्महोल्स, अगर उनका अस्तित्व है और यदि उनसे सिग्नल मिल सकते हैं, तो उनके ज़रिए ही प्रकाश से तेज़ गति से संचार संभव है.

लेकिन मौजूदा समय में वैज्ञानिक संभावनाओं की सीमा यही है और फ़िलहाल तो प्रकाश से तेज़ गति को हासिल कर पाना नामुमकिन सा दिख रहा है

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