दिल्ली की गर्मी में सर्दियों वाला प्रदूषण, माजरा क्या है?
अगर आप दिल्ली और आसपास के इलाक़ों में रहते हैं, तो घर से निकलते ही, कुछ दूर चलते ही आपको अहसास हो रहा होगा कि दिल्ली की हवा इन दिनों पहले जैसी गर्मियों की तरह नहीं है.
आंखों में जलन औ0र सांस लेने में दिक़्क़्त की शिकायत आम तौर पर गर्मियों में नहीं मिलती थी. लेकिन इस बार दिल्ली की गर्मी कुछ इसी तरह की ही है.
11 जून से दिल्ली और आसपास के इलाक़े में प्रदूषण का स्तर ख़तरे के निशान के पार पहुंचा हुआ है, ऐसा अमूमन सर्दियों में होता है, लेकिन इन गर्मियों में दिल्ली का मौसम भी कुछ ऐसा ही हो गया है.
आख़िर इसकी वजह क्या है?
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक़ इस धूल भरी आंधी के पीछे राजस्थान से आई हवा ज़िम्मेदार है.
पर्यावरण मंत्रालय की प्रेस रिलीज़ के मुताबिक़, इस वक़्त राजस्थान का मौसम बेहद सूखा है और तापमान बहुत ज़्यादा है. वहीं से यह धूल भरी आंधी चल रही है. इन दिनों राजस्थान से चलने वाली हवा ने दिल्ली का रुख़ किया है.
मौसम विभाग की माने तो अगले दो-तीन दिनों तक मौसम ऐसा ही रहेगा. रविवार को बारिश का अनुमान है जिसके बाद धूल की ये धुंध छट सकती है.
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक़ हालात इतने गंभीर हैं कि 'ग्रेडेड रेस्पॉन्स एक्शन प्लान' को एक बार फिर से लागू करने का वक़्त आ गया है.
दिल्ली में प्रदूषण का स्तर जब भी ख़तरे के निशान से ऊपर जाता है तब 'ग्रेडेड रेस्पॉन्स एक्शन प्लान' पर अमल किया जाता है.
इसके तहत फौरी तौर पर पेड़ों पर पानी का छिड़काव और निर्माण कार्यों पर रोक लगाने जैसे काम किए जाते हैं.
एहतियात के तौर पर मंत्रालय ने भी जनता से अपील की है कि अगर ज़रूरी काम न हो तो लोग घर पर ही रहें.
कितने ख़तरनाक स्तर पर प्रदूषण?
प्रदूषण के स्तर को मापने के लिए एयर क्वॉलिटी इंडेक्स देखा जाता है.
दिल्ली का एयर क्वॉलिटी इंडेक्स बुधवार को शाम 4 बजे 445 पर था. इसे 'सिवियर' यानी बेहद ख़तरनाक श्रेणी का माना जाता है.
एयर क्वॉलिटी इंडेक्स 50 से कम हो तो सबसे बेहतर माना जाता है.
'सिवियर' कैटिगरी का मतलब है कि ऐसी हवा पहले से बीमार लोगों के लिए बेहद ख़तरनाक होती है. बीमार व्यक्ति के लिए ऐसी हवा में सांस लेने पर ज़्यादा मुश्किलें बढ़ जाती हैं. वहीं स्वस्थ रहने वालों के लिए प्रदूषण का यह स्तर और ज़्यादा ख़तरनाक होता है.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण संस्था के मुताबिक़ दिल्ली के आलावा ग्रेटर नोएडा, गुड़गांव, बुलंदशहर, जोधपुर, मोरादाबाद में भी एयर क्वॉलिटी इंडेक्स 'सिवियर' यानी बेहद ख़तरनाक स्तर पर रहा.
इन शहरों के आलावा ग़ाज़ियाबाद, जयपुर, नोएडा, रोहतक में प्रदूषण का स्तर ख़तरनाक स्तर पर था.
फ़रीदाबाद और पंचकुला में भी प्रदूषण उच्चतम स्तर पर था.
दिल्ली की हवा में बढ़े हुए प्रदूषण के स्तर के कारण हैं PM10 और PM2.5 के कण.
PM 10 की मात्रा 100 हो तो हवा साफ़ मानी जाती है, लेकिन बुधवार को दिल्ली में 800 से ज़्यादा थी.
PM 2.5 की मात्रा हवा में 60 होनी चाहिए, लेकिन बुधवार को ये 250 के पार थी.
PM 10 और PM 2.5 हवा में मौजूद सूक्ष्म कण होते हैं. ये कितने छोटे होते हैं इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि हमारे शरीर के बाल की मोटाई PM 50 माइक्रोन के बराबर होती हैं. PM10 उससे भी पांच गुना महीन हैं.
क्यों है ये ख़तरनाक?
प्रदूषण पर काम करने वाली संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वाइरनमेंट कि अनुमिता रॉय चौधरी के मुताबिक़ गर्मियों का प्रदूषण और सर्दियों के प्रदूषण, दोनों में अंतर होता है.
उनके मुताबिक, "गर्मियों में धूल की मात्रा हवा में ज़्यादा हो तो ख़तरा ज़्यादा बढ़ जाता है. धूल, गाड़ियों से निकलने वाले दूसरे प्रदूषण वाले कण के साथ चिपक कर अधिक ख़तरनाक हो जाती है. इससे सांस लेने में दिक़्क़्त आती है. सूखापन और गर्मी दोनों इस समस्या को और गंभीर बनाते हैं."
अनुमिता बताती हैं, "इस मौसम में धूल, दूसरे ज़हरीले कण के लिए कैरियर का काम करती है. ऐसे में ज़रूरत है कि धूल को कम करने वाले उपायों पर विचार किया जाए"
मौसम विभाग के मुताबिक़ इस बार मॉनसून से पहले वाली बारिश नहीं हुई है. चारों ओर सूखा पड़ा है, तापमान ज़्यादा है, नमी नहीं है, बादल ग़ायब हैं, इस वजह से ये नज़ारा हम दिल्ली में देख रहे हैं.
अनुमिता के मुताबिक सही वक़्त आ गया है जब 'ग्रेडेड रेस्पॉन्स एक्शन प्लान' लागू किया जाए.
उनके मुताबिक़ अब केन्द्र सरकार और राज्य सरकार दोनों को हरकत में आने की ज़रूरत है.
उनके मुताबिक, "दिल्ली में राजस्थान से हवा आ रही है सिर्फ़ यह कह कर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता. अगर दिल्ली में धूल, निर्माण कार्यों की वजह से फैल रही है तो उस पर रोक लगाने का यह सही वक़्त है."
दिल्ली सरकार का पक्ष
लेकिन राज्य सरकार इस वक्त अलग ही मूड में है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री चार दिन से दिल्ली के उपराज्यपाल के ऑफिस में धरने पर बैठे हैं.
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के नाम गुरुवार को एक चिठ्ठी लिखी है. हालांकि वो चिट्ठी उनके और दिल्ली सरकार के बीच पिछले पांच दिन से चल रही खींचतान पर हैं, लेकिन उसमें दिल्ली के प्रदूषण का भी ज़िक्र है.
चिट्ठी में उन्होंने लिखा, "पहले हर महीने 15 दिनों में प्रदूषण की समीक्षा एंव प्लानिंग की बैठक होती थी. आईएएस अफसरों की हड़ताल की वजह से पिछले तीन महीने से ये मीटिंग नहीं हो पाई है"
अरविंद केजरीवाल ने एक रीट्वीट किया है जिसके मुताबिक़ राज्य के पर्यावरण सचिव ने पिछले 115 दिनों से राज्य के पर्यावरण मंत्री एके सिंह से न तो मुलाक़ात की है और ही फ़ोन कॉल का जवाब दिया है.
साफ़ है कि दिल्ली एनसीआर के प्रदूषण के स्तर पर राज्य सरकार ने अपने हाथ खड़े कर लिए हैं.
ग़ौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्ली और पड़ोसी राज्यों के साथ मिल कर केन्द्र सरकार की एक कमेटी बनी थी.
हर 15 दिन पर इस कमेटी की बैठक होती है. जब-जब प्रदूषण का स्तर ख़तरे के निशान को पार कर जाता है तब-तब यही कमेटी बताती है कि सरकारों को क्या इमर्जेंसी क़दम उठाने हैं.
स्वास्थ्य पर असर
इंडियन मेडिकल एसोशिएशन के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल के मुताबिक इस तरह के प्रदूषण का असर बच्चों और बड़ों दोनों पर पड़ता है.
अगर हवा में PM 10 की मात्रा ज़्यादा हो जाए, तो अस्थमा और क्रॉनिकल ब्रोंकाइटिस का ख़तरा बढ़ जाता है.
अगर हवा में PM 2.5 की मात्रा बढ़ जाए तो दिल की बीमारी, बल्ड प्रेशर, और स्ट्रोक का ख़तरा बढ़ जाता है.
ये हवा फेफड़ों के लिए बहुत नुक़सानदायक है.
बचाव के तरीक़े
डॉ. अग्रवाल के मुताबिक़ वैसे तो इस प्रदूषण से बचने के लिए घर से बाहर न निकलना ही सबसे अच्छा उपाय है.
सुबह के समय जो लोग बाहर कसरत के लिए जाते हैं वे फ़िलहाल बाहर न जाएं.
जहां भी धूल दिखे वहां पानी जरूर डालें.
ऐसे मौसम में मास्क कारगर नहीं है. धूल में मुंह पर गीला कपड़ा लगा लें.
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