मौत के मुंह से वापस लाने का जुनून

get iti website @ 1800/-

 

 

मौत के मुंह से वापस लाने का जुनून

क्या मरीज के शरीर में खून की जगह ठंडे नमकीन पानी के प्रवाह से उसे मौत के मुँह से वापस लाया जा सकता है ?

यूनिवर्सिटी ऑफ़ एरिज़ोना (ट्यूसौन) के पीटर री का तो यही दावा है.

वो कहते हैं, "जब आपके शरीर का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस हो, दिमाग सुन्न पड़ गया हो, धड़कन बंद हो गई हो - तो हर कोई मानेगा कि आप मर गए हैं…..लेकिन हम आपको मौत के मुंह से वापस ला सकते हैं."

री बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बोल रहे हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेरीलैंड के सैमुअल तिशरमैन के साथ उन्होंने दिखाया है कि शरीर को कई घंटों तक ऐसी स्थिति में रखना संभव है.

सस्पेंडेड एनिमेशन
फ़िलहाल इस प्रक्रिया का इस्तेमाल जानवरों पर किया गया है और चिकित्सा क्षेत्र में ये क्रांतिकारी प्रक्रिया है.
इसमें शरीर से सारा खून निकालकर उसे सामान्य तापक्रम से 20 डिग्री सेल्सियस नीचे तक ठंडा किया जाता है.

एक बार चोट सही होने पर, खून को दोबारा नसों के सहारे शरीर में पहुंचा दिया जाता है और शरीर धीरे-धीरे गर्म होने लगता है.

री कहते हैं, "जैसे ही खून पहुंचने लगता है शरीर का रंग गुलाबी होना शुरू हो जाता है. तीस डिग्री तापमान पर दिल एक बार धड़का. और फिर जैसे ही शरीर और गर्म होता है, दिल ख़ुद से धड़कने लगता है."

तिशरमैन कहते हैं, "इस प्रयोग में जानवर कुछ समय तक बेहोशी जैसी स्थिति में होते हैं, लेकिन एक दिन के बाद सामान्य हो जाते हैं. सचेत हो जाने पर ऐसा नहीं दिखता कि जानवर पर इस प्रयोग का कोई ख़ास बुरा असर हुआ हो."

मनुष्यों पर प्रयोग
तिशरमैन इस साल की शुरुआत में तब सुर्खियों में आए थे, जब उन्होंने घोषणा की थी कि वे पिट्सबर्ग में गोली से बुरी तरह घायल एक व्यक्ति पर यह तकनीक आजमाने के लिए तैयार हैं.

उनका कहना था कि ये प्रयोग उसी मरीज़ पर होगा जो इतनी बुरी तरह घायल हो कि उसका दिल धड़कना बंद हो गया होगा, मतलब ये प्रयोग ही उसकी आख़िरी उम्मीद हो.

तब सीएनएन की सुर्खी थी 'सस्पेंडेड एनिमेशन से मौत को धोखा' और न्यूयॉर्क टाइम्स की हेडलाइन थी, 'मरीज को बचाने के लिए पहले उसे मारना..'

मीडिया का इन ख़बरों से तिशरमैन कुछ नाराज़ हैं. वे कहते हैं, "लोगों के लिए यह समझना ज़रूरी है कि ये साइंस फ़िक्शन नहीं है. यह प्रयोगों पर आधारित है. इसे इस्तेमाल करने से पहले इसके बारे में अनुशासित अध्ययन किया गया है."

लोगों को मौत के मुंह से वापस खींच लाने की तिशरमैन की इच्छा 1960 के दशक में ही दिखने लगी थी जब वह मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे और उनके गुरू थे पीटर साफ़ार.

धड़कन लौटने की संभावना
1960 के दशक में पीटर साफ़ार ने ही सीपीआर तकनीक के बारे मे बताया था, जिसके तहत दिल की धड़कन अचानक रुकने पर दिल पर दबाव डालने से धड़कन वापस आने की संभावना रहती है.

दिल के दौरे के बाद ऑक्सीजन की कमी से शरीर के अहम अंगों को गंभीर नुक़सान हो सकता है. तिशरमैन कहते हैं, "अगर अंगों को ऑक्सीजन नहीं मिलता है तो वो मरने लगते हैं."

लेकिन गंभीर दुर्घटनाओं के बाद पड़ने वाले दिल के दौरों में सर्जन के पास सबसे अच्छा विकल्प शरीर के निचले हिस्से की धमनियों को बांध देना होता है.

इसके बाद डॉक्टर छाती को खोलते हैं और दिल की मालिश करते हैं. इससे दिमाग में खून का संचार होता रहता है और डॉक्टरों को चोट की सर्जरी का मौका मिल जाता है. दुर्भाग्यवश ऐसे मामलों में मरीज का जीवन बचने की संभावना 10 में से एक से भी कम है.

यही वजह है कि तिशरमैन शरीर को 10 से 15 डिग्री सेल्सियस पर लाना चाहते हैं, ताकि चिकित्सकों को ऑपरेशन के लिए दो या इससे अधिक घंटे मिल जाएं.

हाइपोथर्मिया
हालाँकि डीप हाइपोथर्मिया की यह अवस्था अब भी दिल की कुछेक सर्जरी में ही इस्तेमाल होती है. लेकिन तिशरमैन इस प्रयोग को उस मरीज पर करना चाहते हैं जो अस्पताल आने से पहले ही 'मर' चुका हो.

शायद, सबसे चौंकाने वाली बात तो ये है, कि उनकी टीम मरीज के शरीर से पूरा खून निकाल लेती है और इसमें ठंडा सलाइन सॉल्यूशंस भर देती है. चूंकि शरीर का मेटाबॉलिज़म (चयापचय क्रिया) रुक जाता है, इसलिए कोशिकाओं को ज़िंदा रखने के लिए खून की ज़रूरत नहीं होती.

यह कहने की ज़रूरत नहीं कि मनुष्यों पर इसके परीक्षण की मंज़ूरी मिलना बहुत मुश्किल था. तिशरमैन को इस साल की शुरुआत में गोली से घायल लोगों पर परीक्षण करने की मंज़ूरी मिली.

पीट्सबर्ग के अस्पताल में महीने में एक-दो मामले ऐसे आते हैं यानी कि मनुष्यों पर प्रयोग का सिलसिला तो शुरू हो ही गया है, हालाँकि तिशरमैन फ़िलहाल इसके नतीजों पर बात नहीं कर सकते है.

तिशरमैन अब बाल्टीमोर में भी परीक्षण शुरू करने की योजना बना रहे हैं. इसी तरह से री भी ट्यूसौन में ट्रॉमा सेंटर बनाना चाहते हैं.

चुनौतियां
जैसा कि किसी भी मेडिकल रिसर्च में होता है, जानवरों के बाद मनुष्यों पर परीक्षण करने की अपनी चुनौतियां होती हैं.

ऑपरेशन के बाद जानवरों को उनका खून वापस दे दिया जाता है, जबकि मनुष्यों के मामले में ट्रांसफ्यूज़न के ज़रिए ब्लड बैंक से खून दिया जाएगा. जानवर को चोट के समय एनेस्थेसिया दिया जाता है, जबकि मनुष्यों के मामले में ये नहीं होगा.

अगर इन प्रयोगों में सफलता मिली तो सस्पेंडेड एनिमेशन के तरीके को और गंभीर चोटों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

कुछ वैज्ञानिकों का तो यह भी ख़्याल है कि सलाइन सॉल्यूशंस में अगर कुछ दवाइयां मिला दी जाएं तो क्या शरीर को आगे होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है

ITI Student Resume Portal

रिज्यूम पोर्टल का मुख्य उद्देश्य योग्य छात्रों की जानकारी सार्वजनिक पटल पर लाने की है जिससे जिन्हें आवश्यकता हो वह अपने सुविधा अनुसार छात्रों का चयन कर सकते हैं

ITI Student Resume

Search engine adsence