Anand's blog

मौत के मुंह से वापस लाने का जुनून

मौत के मुंह से वापस लाने का जुनून

क्या मरीज के शरीर में खून की जगह ठंडे नमकीन पानी के प्रवाह से उसे मौत के मुँह से वापस लाया जा सकता है ?

यूनिवर्सिटी ऑफ़ एरिज़ोना (ट्यूसौन) के पीटर री का तो यही दावा है.

वो कहते हैं, "जब आपके शरीर का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस हो, दिमाग सुन्न पड़ गया हो, धड़कन बंद हो गई हो - तो हर कोई मानेगा कि आप मर गए हैं…..लेकिन हम आपको मौत के मुंह से वापस ला सकते हैं."

री बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बोल रहे हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेरीलैंड के सैमुअल तिशरमैन के साथ उन्होंने दिखाया है कि शरीर को कई घंटों तक ऐसी स्थिति में रखना संभव है.

मौत के मुंह से वापस लाने का जुनून

मौत के मुंह से वापस लाने का जुनून

क्या मरीज के शरीर में खून की जगह ठंडे नमकीन पानी के प्रवाह से उसे मौत के मुँह से वापस लाया जा सकता है ?

यूनिवर्सिटी ऑफ़ एरिज़ोना (ट्यूसौन) के पीटर री का तो यही दावा है.

वो कहते हैं, "जब आपके शरीर का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस हो, दिमाग सुन्न पड़ गया हो, धड़कन बंद हो गई हो - तो हर कोई मानेगा कि आप मर गए हैं…..लेकिन हम आपको मौत के मुंह से वापस ला सकते हैं."

री बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बोल रहे हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेरीलैंड के सैमुअल तिशरमैन के साथ उन्होंने दिखाया है कि शरीर को कई घंटों तक ऐसी स्थिति में रखना संभव है.

ये स्तनधारी कभी पार्टनर को धोखा नहीं देता

ये स्तनधारी कभी पार्टनर को धोखा नहीं देता

ज़्यादातर जानवर आम तौर पर जोड़ों के बंधनों में नहीं बंधते. पांच फ़ीसदी से कम जानवर ही जोड़े में बंधते हैं, इनमें से ज़्यादातर अपने पार्टनर को ख़ूब धोखा भी देते हैं.

लेकिन यूरोप में पाए जाने वाले उदबिलाव ऐसे नहीं होते. उदबिलाव का एक जोड़ा जिंदगी भर एक दूसरे के प्रति वफ़ादारी निभाता है.

चेक गणराज्य के प्राग स्थित चार्ल्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर अध्ययन किया है.

उन्होंने रूस के किरोव क्षेत्र में उदबिलावों की कई बसावटों का अध्ययन किया और इस नतीजे तक पहुंचे.

नन्हे दिल बचाएंगे लाइलाज बीमारी से

नन्हे दिल बचाएंगे लाइलाज बीमारी से

स्कॉटलैंड के वैज्ञानिकों ने चिकित्सा संबंधी शोध के लिए सैंकड़ों की संख्या में लघु मानव हृदय तैयार किए हैं.

इन हृदय कोशिकाओं के दोनों नन्हे वॉल्व हर दो सेकेंड पर एक साथ धड़कते हैं. इनके ऊतक इंसान के दिल की पेशियों से मेल खाते हैं.

अबर्टे यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता इन छोटे छोटे दिलों का इस्तेमाल लाइलाज बीमारियों में संभावित दवाओं के असर की जांच के लिए करेंगे.

इस शोध को स्पेन के वेलेंशिया में बायोटेक्नोलॉजी पर हो रही वर्ल्ड कांग्रेस में पेश किया जाएगा.

इन की कोशिकाओं का बाहरी घेरा (स्फेयर) स्टेम कोशिकाओं से बना है और यह मात्र एक मिलीमीटर चौड़ा है.

क्या जूस पीने से सेहत ठीक रहती है?

क्या जूस पीने से सेहत ठीक रहती है?

तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में हर काम फ़टाफ़ट होना चाहिए. तो, खान-पान ही तसल्ली से क्यों हो? फल खाने में वक़्त क्यों ज़ाया किया जाए?

फलों का जूस निकाला, पिया और चल पड़े काम पर. समय भी बचेगा और सेहत का भी भला होगा.

वाक़ई?

क्या फलों का रस निकालकर पीना वाक़ई सेहतमंद है?

आज कामकाजी लोगों के बीच फलों का रस पीने का बहुत चलन है. व्यस्तता के बीच चबाकर खाने के लिए वक़्त जो नहीं है.

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तो, सुबह-सुबह जूस गटका औऱ काम पर लग गए. सेहत की फ़िक्र भी दूर हुई. बहुत से लोग तो ये भी दावा करते हैं कि जूस आप के शरीर को डिटॉक्स भी करते हैं.

शाकाहारी हुई दुनिया तो हर साल 70 लाख तक कम मौतें

शाकाहारी हुई दुनिया तो हर साल 70 लाख तक कम मौतें

दुनिया भर में 12 जून का दिन विश्व मांस मुक्त दिवस के रूप में मनाया गया. अगर दुनिया अचानक हमेशा के लिए शाकाहारी हो जाए तो इसका असर क्या होगा?

हम यहां बता रहे हैं कि इससे जलवायु, वातावरण, हमारी सेहत और अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा.

एक ऑटोसेक्शुअल लड़की की कहानी

ये सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है कि मैं हमेशा ख़ुद को देखकर ही आकर्षित होती हूं.

बाकी टीनेजर्स की तरह मुझे भी अपने व्यक्तित्व और लुक की चिंता रहती है. जब भी मैं नहा कर आती हूं, कपड़े पहनती हूं या फिर सेक्शुअल अट्रैक्शन की खोज में होती हूं तो ख़ुद को आईने में देखती हूं.

हो सकता है मेरा शरीर आकर्षित करने वाला न हो. मैं पतली हूं, मेरी ठोडी बहुत लंबी है, मेरे बाल घुंघराले हैं. लेकिन बिना कपड़े के मेरा शरीर मुझे वाक़ई आकर्षित करता है.

पैसे वाले अकेले क्यों होते हैं?

पैसे वाले अकेले क्यों होते हैं?

लोग अक्सर एक-दूसरे को कहते हैं कि पैसे के पीछे मत भागो, अकेले रह जाओगे. फिर भी पूरी दुनिया में लोग पैसे के पीछे ही दीवानों की तरह भागते नज़र आते हैं.

अक्सर हम देखते हैं कि जिन लोगों के पास बहुत सारा पैसा होता है, वो अकेले हो जाते हैं. सिर्फ़ चापलूस और मतलबी लोग उनके क़रीब रह जाते हैं.

आख़िर ऐसा क्यों होता है?

इस सवाल का जवाब कुछ मिसालों से तलाशने की कोशिश करते हैं.

फ़ेसबुक छोड़ो, सुख से जियो

फ़ेसबुक छोड़ो, सुख से जियो

आप अपनी लाइफ़ में खुश रहना चाहते हैं, तो कुछ दिनों के लिए फ़ेसबुक को हाथ मत लगाइए.

ऐसा डेनमार्क के कोपनहेगन विश्वविद्यालय में की गई ताज़ा रिसर्च के आधार पर कहा जा रहा है.

मॉर्टन ट्रॉमहोल्ट ने मास्टर की अपनी थीसिस में लिखा है, "ज़्यादातर लोग रोज़ाना फ़ेसबुक का इस्तेमाल करते हैं, पर उन्हें इसके नतीजों की जानकारी नहीं है. इस रिसर्च में यह पाया गया है कि फ़ेसबुक के इस्तेमाल से आपकी खुशी कम हो जाती है."

ट्रॉमहोल्ट ने साल 2015 के अंत में 1,095 लोगों पर अपना अध्ययन किया. इसमें आधे लोगों से कहा गया कि वे एक हफ़्ते तक फ़ेसबुक से दूर रहें.

...तो इसका नतीजा क्या हुआ?

गुदगुदी करने पर आदमी की तरह क्यों हंसते हैं चिम्पैंज़ी?

गुदगुदी करने पर आदमी की तरह क्यों हंसते हैं चिम्पैंज़ी?

कभी आपने सोचा है कि हमें हंसी क्यों आती है? शरीर के किसी ख़ास हिस्से को छूने पर गुदगुदी क्यों होती है?

नहीं सोचा ना?

तो चलिए, आज हंसी और गुदगुदी की ही बात करते हैं.

इंसानों के पुरखे बंदरों के रिश्तेदार थे, ये तो हम सब जानते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि इंसान को हंसने का हुनर भी बंदर परिवार से ही विरासत में मिला है.

हम ख़ुश होते हैं तो हंसते हैं. कोई बात अच्छी लगती है तो मुस्कुराते हैं. तो क्या ये सब चिम्पैंज़ी, बोनबोन जैसे प्राइमेट्स यानी वानर परिवार के सदस्यों के साथ भी होता है?

अकेलेपन के सन्नाटे को चीरते 5 सच

अकेलेपन के सन्नाटे को चीरते 5 सच

हम सब ने अपनी ज़िंदगी में कभी न कभी ख़ुद को अकेला महसूस किया होगा. आज दुनिया भर में अकेलेपन को लेकर बड़ी चर्चा हो रही है. ब्रिटेन में एक मंत्री को सरकारी विभागों में अकेलेपन से जूझ रहे लोगों की समस्याओं को सुलझाने की ज़िम्मेदारी दी गई है. दिक़्क़त ये है कि अकेलेपन को लेकर तमाम मिथक गढ़े गए हैं. ये सच्चाई से परे हैं. मगर बहुत से लोग इन पर यक़ीन करते हैं. अकेलेपन को समझने के लिए हमें पहले इन मिथकों की सच्चाई जाननी होगी. 1. अकेलेपन का मतलब अलग-थलग पड़ना है अकेलापन महसूस करने का मतलब अकेला होना नहीं है. इसका मतलब ये है कि आप दूसरों से जुड़ाव महसूस नहीं करते.

चंद्रयान-2 है इसरो का 'मिशन पॉसिबल'

चंद्रयान-2 है इसरो का 'मिशन पॉसिबल'

भारत की अंतरिक्ष ऐजेंसी इसरो ने दूसरे चंद्र अभियान के लिए चंद्रयान-2 भेजने की घोषणा कर दी है.

इसरो के अध्यक्ष डॉक्टर के सिवन ने कहा कि 15 जुलाई को तड़के क़रीब 2.51 बजे चंद्रयान-2 उड़ान भरेगा और अनुमान है कि 6 या 7 सितंबर को वो चांद पर उतर जाएगा.

2008 में भारत ने पहले चंद्रयान को चंद्रमा की कक्षा में भेजने में सफलता हासिल की थी, हालांकि ये यान चंद्रमा पर उतरा नहीं था.

पूरे विश्व की निगाहें भारत के इस अंतरिक्ष मिशन पर लगी हुई हैं. भारत 10 साल में दूसरी बार चांद पर जाने वाला अपना मिशन पूरा करने जा रहा है. भारत में इस मिशन को लेकर काफ़ी उत्साह है.

नासा पर्यटकों के लिए खोलेगा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन

नासा पर्यटकों के लिए खोलेगा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन

पर्यटक अगले साल से नासा के अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर जा सकेंगे. इसके लिए उन्हें एक रात के 35 हज़ार डॉलर चुकाने होंगे.

अमरीका की अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा है कि वो स्पेस स्टेशन को पर्यटन और दूसरे व्यापारिक उपक्रमों के लिए खोल रही है.

अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन की उप निदेशक रॉबिन गैटेंस ने कहा कि हर साल कम अवधि के दो प्राइवेट अंतरिक्ष मिशन भेजे जाएंगे. इन मिशन का खर्च निजी कंपनियां उठाएंगी.

नासा ने बताया कि प्राइवेट अंतरिक्ष-यात्रियों को अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन तक जाने के लिए तीस दिन तक का वक्त मिलेगा. वो अमरीका के स्पेसक्राफ्ट से यात्रा करेंगे.

अल्ज़ाइमर की नई दवा को कंपनी ने क्यों छिपाए रखा?

अल्ज़ाइमर की नई दवा को कंपनी ने क्यों छिपाए रखा?

जब पिछले साल जनवरी में जब दवाइयां बनाने वाली अमरीकी कंपनी फाइज़र ने अल्ज़ाइमर और पर्किंसन जैसी बीमारियों के लिए नई दवा न बनाने का ऐलान किया तो मरीज़ों और शोधकर्ताओं के बीच एक निराशा छा गई थी.

इससे पहले यह कंपनी अल्ज़ाइमर के लिए वैकल्पिक दवा तलाशने में लाखों डॉलर ख़र्च कर चुकी थी. लेकिन फिर उन्होंने तय किया कि ये पैसा कहीं और दूसरे काम में ख़र्च किया जाएगा.

फाइज़र ने इसे सही ठहराते हुए कहा था कि हमें इस ख़र्च को वहां लगाना चाहिए जहां हमारे वैज्ञानिकों की पकड़ ज़्यादा मज़बूत है.

'महिलाओं के ए वायग्रा' को मंज़ूरीलि

'महिलाओं के ए वायग्रा' को मंज़ूरीलि

अमरीकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने महिलाओं की कामेच्छा को बढ़ाने की एक दवा को मंज़ूरी दे दी है. इसे 'फीमेल वायग्रा' माना जा रहा है.

फ़्लिबैनसेरिन नाम की इस दवा को स्प्राउट फॉर्मेस्यूटिकल्स ने बनाया है.

हाल ही में इस दवा को एफडीए की परामर्श समिति ने पास कर दिया है.

मासिक धर्म निवृत्ति से पहले महिलाओं की कामेच्छा को फिर से हासिल करने के लिए मस्तिष्क के कुछ निश्चित रसायनों को बढ़ाने के मकसद से इस दवा को बनाया गया है.

सेहत पर अन्य मामूली असर डालने के लिए इस दवा की आलोचना होती रही है.

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