क्या दरियाई घोड़ा मांसाहारी है?

क्या दरियाई घोड़ा मांसाहारी है?

दरियाई घोड़ा अपने शरीर और व्यवहार के कारण शुरू से ही उत्सुकता का कारण रहा है.

इस जीव के बारे में जितनी जानकारी है उससे यह माना जाता है कि यह एक शाकाहारी जानवर है.

लेकिन हाल ही में आए एक शोध में इस बात का प्रमाण दिया गया है कि यह मांसाहारी भी है.

वैज्ञानिक इस बात से दंग हैं और इस गुत्थी को सुलझाने में जुट गए हैं.

बरसों से वैज्ञानिकों को हिप्पोपोटैमस के बारे में काफ़ी ग़लतफ़हमी रही है..

प्राचीन ग्रीक भाषा में इनके नाम का मतलब होता है दरियाई घोड़ा, हालाँकि आधुनिक विज्ञान इन्हें सूअर की प्रजाति के नज़दीक पाता है.

सबसे ताज़ा शोध में पाया गया है कि व्हेल की प्रजाति से इनका संबंध अधिक है.

जैसा पहले समझा जाता था, ये पसीने के रूप में खून नहीं निकालते हैं, बल्कि इनके पसीने में एक लाल रंग का बैक्टीरियारोधी सनस्क्रीन द्रव होता है.

लेकिन दरियाई घोड़ों की 30.5 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार ने जीव वैज्ञानिकों को हैरत में डाल दिया है.

असल में सदियों के अध्ययन से हम मानकर चलते हैं कि इन जीवों के बारे में हम सब कुछ जानते हैं.

ये जीव शाकाहारी के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन क्या इस जानकारी से उलट भी कोई तथ्य है?

एक तथ्य, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता, वो यह है कि दरियाई घोड़े विशाल आकार के होते हैं और वयस्क नर का वज़न 3,200 किलोग्राम तक होता है.

उनकी आक्रामकता, सहवास के दौरान बुरी तरह लड़ाई करने और 40 सेंटीमीटर तक लंबे दांतों से काटने और हमला करने की उनकी छवि के बारे में अच्छे खासे प्रमाण मौजूद हैं.

इनके पास पहुंचने वाले बदक़िस्मत स्थानीय लोगों और टूर गाइडों के साथ हुई क्रूर भिड़ंत के कारण अफ़्रीका में इन्हें बेहद ख़तरनाक़ जानवर माना जाता है.

हालाँकि दरियाई घोड़े केवल घास पर ज़िंदा रहते हैं और अपने प्रभावशाली शरीर को बनाए रखने के लिए एक रात में क़रीब 40 किलोग्राम खाना पचा जाते हैं.

'अफ़्रीकन जर्नल ऑफ़ इकोलॉजी' में लंदन के 'इम्पीरियल कॉलेज' के पीएचडी छात्र लीजीया डोरवर्ड ने एक शोध में अपने दुर्लभ अनुभवों को साझा किया है.

वो कहते हैं, "मैं दक्षिण अफ़्रीका के क्रूज़र नेशनल पार्क के दक्षिणी छोर पर जब एक नदी को पार कर रहा था, तो मैंने पानी में दो दरियाई घोड़े देखे. इसमें से एक कुछ सड़ चुका था. मरे हुए दरियाई घोड़े को चारों ओर से मगरमच्छों ने घेर रखा था. यह कोई नई बात नहीं थी. लेकिन मैंने देखा कि एक दरियाई घोड़ा भी अवशेष खा रहा था."

दरियाई घोड़े के मांसाहार की यह पुष्ट घटना वैज्ञानिक दस्तावेज में सिर्फ़ दूसरी है.

डोरवर्ड यह देख कर दंग रह गए कि शाकाहार के लिए जाना जाने वाला जानवर न केवल मांस खा रहा है, बल्कि अपनी ही प्रजाति के जीव का मांस खा रहा है.

वो बताते हैं, "जब मैंने इंग्लैंड लौटने के बाद उनकी ख़ुराक़ के बारे में पढ़ा, तब मुझे अहसास हुआ कि दरियाई घोड़ों का यह व्यवहार कितना अपरिचित है."

अमरीका के अलास्का विश्वविद्यालय के डॉक्टर जोसेफ़ पी डूडले ने पहली बार 1995 में ज़िम्बाब्वे के वांगे नेशनल पार्क में दरियाई घोड़ों को मांस खाने का प्रमाण इकठ्ठा किया था.

तब से वो दरियाई घोड़े को हिरण, हाथी के शावक और यहां तक कि अपनी ही प्रजाति के जीव खाने के साक्ष्य इकट्ठा करते रहे हैं.

वहीं मांसाहार की घटनाएं अभी भी दर्जन भर से कम हैं, लेकिन ये घटनाएं दक्षिण अफ़्रीका से लेकर युगांडा तक घटित हुई हैं.

अतीत में, दरियाई घोड़े के विशेषज्ञ डॉ. कीथ एलट्रिंघम ने सुझाव दिया था कि ये जानवर परभक्षी नहीं हैं लेकिन खास पोषक तत्वों या भोजन की कमी उन्हें मांस भक्षण की ओर ले जाती है.

यह सच है कि जानवरों को मनुष्यों की ओर से बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ रहा है. मनुष्य उनके मांस और दांत के लिए उनका शिकार करते हैं, उनके इलाके में बस्तियां बनाते हैं और पानी के लिए प्रतिद्वंद्विता को बढ़ाते हैं.

ग़रीब समुदायों और उनके पर्यावरण के बीच संबंधों का अध्ययन करने वाले डोरवर्ड कहते हैं, "यदि दरियाई घोड़ों में मांसाहार का कारण पूरी ख़ुराक़ न मिल पाना है तो सूखे के समय या सीमित भोजन की स्थिति में वे और ख़तरनाक़ हो सकते हैं."

डॉक्टर डूडले मानते हैं कि दरियाई घोड़ों में मांसाहार का व्यवहार बढ़ नहीं रहा है बल्कि अतीत में इसे अनदेखा किया गया है.

वो कहते हैं, यह व्यवहार तबसे चलता आ रहा है, जबसे दरियाई घोड़े हैं. यह नया नहीं है, अंतर यह है कि मनुष्यों ने इस घटना को हाल ही में खोजा है.

डॉक्टर डूडले और उनके सहयोगी दरियाई घोड़ों के इस हालिया रहस्य की गुत्थी को सुलझाने में जुट गए हैं.

वह उम्मीद करते हैं कि पर्यटकों की तस्वीरें, ऑनलाइन वीडियो साझा करने की तेज़ी से बढ़ती प्रवृत्ति, साथ ही साथ परम्परागत वैज्ञानिक प्रेक्षण उन जीवों को समझने के लिए अधिक अवसर मुहैया कराएंगे, जिनका इतिहास विरोधाभास से भरा है.

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