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World Blood Donor Day: रक्तदान और उससे जुड़े मिथकों का सच

World Blood Donor Day: रक्तदान और उससे जुड़े मिथकों का सच

विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो ज़्यादातर सेहतमंद लोग रक्तदान करते हैं.

दुनिया में हर जगह लोग रक्तदान करते हैं. रक्तदान करने के लिए लोगों में जागरूकता फैलाई जाती है और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को रक्तदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.

वैसे तो रक्त दान के लिए कई नियमों का पालन किया जाता है. लेकिन लोगों के बीच इससे जुड़े कई मिथक और आधे-अधूरे सच भी जिन्हें वो मानते आ रहें हैं.

शाकाहारी लोग रक्तदान नहीं कर सकते

World Blood Donor Day: रक्तदान और उससे जुड़े मिथकों का सच

World Blood Donor Day: रक्तदान और उससे जुड़े मिथकों का सच

विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो ज़्यादातर सेहतमंद लोग रक्तदान करते हैं.

दुनिया में हर जगह लोग रक्तदान करते हैं. रक्तदान करने के लिए लोगों में जागरूकता फैलाई जाती है और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को रक्तदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.

वैसे तो रक्त दान के लिए कई नियमों का पालन किया जाता है. लेकिन लोगों के बीच इससे जुड़े कई मिथक और आधे-अधूरे सच भी जिन्हें वो मानते आ रहें हैं.

शाकाहारी लोग रक्तदान नहीं कर सकते

वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में मानव शुक्राणु बनाने का दावा किया है.

वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में मानव शुक्राणु बनाने का दावा किया है.

ब्रिटेन में न्यूकासल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में मानव शुक्राणु बनाने का दावा किया है. वैज्ञानिकों का मानना है कि दुनिया में पहली बार हुए इस प्रयोग की सफलता से पुरुषों में बंध्यता या बाप नहीं बन पाने की समस्या को दूर करने में मदद मिल सकती है.न्यूकासल विश्वविद्यालय और नॉर्थईस्ट स्टेम सेल इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में स्पर्म या शुक्राणु विकसित करने के अपने सफल प्रयोग की रिपोर्ट विज्ञान पत्रिका 'स्टेम सेल एंड डेवलपमेंट' में प्रकाशित की है.

भारत में मिली नई प्रजाति की छिपकली

भारत में मिली नई प्रजाति की छिपकली

वैज्ञानिकों ने भारत में महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट के हरे-भरे पहाड़ों में एक नई प्रजाति की छिपकली की खोज की है.

छिपकली की प्रजाति के इस सरिसृप की खोज कोल्हापुर ज़िले के एक जीव-वर्गीकरण विशेषज्ञ वरद गिरी ने की है. इस प्रजाति का नाम सीनेमैसपिस कोल्हापुरेन्सिस रखा गया है.

वरद गिरी और उनके सहयोगियों ने अपनी खोज के बारे में इस माह के ज़ूटाक्सा जर्नल में प्रकाशित किया है.

हाल के दिनों में इस इलाक़े में खोजी गई छिपकली की यह तीसरी प्रजाति है.

भारत में मिला घोंसले बनाने वाला मेंढक

भारत में मिला घोंसले बनाने वाला मेंढक

भारत के एक वैज्ञानिक ने मेंढकों की तीन ऐसी दुर्लभ प्रजातियाँ ढूँढने का दावा किया है जो अपने अंडे देने के लिए घोंसले बनाते हैं.

मेंढक की ये प्रजातियां केरल और कर्नाटक की पश्चिमी पहाड़ी श्रंखलाओं के जंगलों में पाई जाती है जहाँ ख़ूब बारिश होती है.

दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉक्टर एसडी बीजू का कहना है कि ये छोटे-छोटे मेंढक 12 सेंटीमीटर तक लंबे होते हैं. ये मेंढक अंडे देने के बाद उन्हें गर्मी, शिकारी पक्षियों और कीड़ों से बचाने के लिए घोंसले बनाते हैं.

भारत में वैज्ञानिकों ने डायनासोर के सैकड़ों अंडों को ढूँढ निकाला है

भारत में वैज्ञानिकों ने डायनासोर के सैकड़ों अंडों को ढूँढ निकाला है

भारत में वैज्ञानिकों ने डायनासोर के सैकड़ों अंडों को ढूँढ निकाला है, ये अंडे साढ़े छह करोड़ साल पुराने हो सकते हैं.

ये अंडे संयोगवश वैज्ञानिकों के हाथ लगे, वे तमिलनाडु में एक नदी के किनारे प्राचीन धरोहरों की तलाश में खुदाई कर रहे थे.

खुदाई के दौरान उन्हें जीवाश्म बन चुके अंडों के ढेर मिले जिनके नमूने दुनिया भर के विशेषज्ञों को भेजे गए जिन्होंने पुष्टि की है कि ये डायनासोर के ही अंडे हैं.

अंडों का आकार फुटबॉल जितना बड़ा है, वैज्ञानिकों का मानना है कि मादा डायनासोर ने अंडे देने के बाद उन्हें रेत में दबा दिया होगा.

किस देश के लोग करते हैं दफ्तर में सबसे ज़्यादा काम?

किस देश के लोग करते हैं दफ्तर में सबसे ज़्यादा काम?

अक्सर आप लोगों को शिकायत करते सुनते हैं, कि

'काम बहुत ज़्यादा है'.

'दफ़्तर में देर तक रुकना पड़ता है'.

'यार, मेरे ऑफ़िस जाने का टाइम तो फ़िक्स है, मगर लौटने का नहीं'.

इन बातों से ये लगता है कि ऑफ़िस का टाइम अंतहीन सिलसिला है. काम इतना कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता.

भारत में ये मुश्किल इसलिए है, क्योंकि यहां काम के अधिकतम घंटे कितने होंगे, इसकी कोई आधिकारिक पाबंदी नहीं है. अलग-अलग कंपनियों में अलग-अलग नियम है. कहीं हफ़्ते में 60 घंटे काम होता है, तो कहीं 40-45 घंटे.

एक ऑटोसेक्शुअल लड़की की कहानी

एक ऑटोसेक्शुअल लड़की की कहानी

ये सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है कि मैं हमेशा ख़ुद को देखकर ही आकर्षित होती हूं.

बाकी टीनेजर्स की तरह मुझे भी अपने व्यक्तित्व और लुक की चिंता रहती है. जब भी मैं नहा कर आती हूं, कपड़े पहनती हूं या फिर सेक्शुअल अट्रैक्शन की खोज में होती हूं तो ख़ुद को आईने में देखती हूं.

हो सकता है मेरा शरीर आकर्षित करने वाला न हो. मैं पतली हूं, मेरी ठोडी बहुत लंबी है, मेरे बाल घुंघराले हैं. लेकिन बिना कपड़े के मेरा शरीर मुझे वाक़ई आकर्षित करता है.

पैसे वाले अकेले क्यों होते हैं?

पैसे वाले अकेले क्यों होते हैं?

लोग अक्सर एक-दूसरे को कहते हैं कि पैसे के पीछे मत भागो, अकेले रह जाओगे. फिर भी पूरी दुनिया में लोग पैसे के पीछे ही दीवानों की तरह भागते नज़र आते हैं.

अक्सर हम देखते हैं कि जिन लोगों के पास बहुत सारा पैसा होता है, वो अकेले हो जाते हैं. सिर्फ़ चापलूस और मतलबी लोग उनके क़रीब रह जाते हैं.

आख़िर ऐसा क्यों होता है?

इस सवाल का जवाब कुछ मिसालों से तलाशने की कोशिश करते हैं.

फ़ेसबुक छोड़ो, सुख से जियो

फ़ेसबुक छोड़ो, सुख से जियो

आप अपनी लाइफ़ में खुश रहना चाहते हैं, तो कुछ दिनों के लिए फ़ेसबुक को हाथ मत लगाइए.

ऐसा डेनमार्क के कोपनहेगन विश्वविद्यालय में की गई ताज़ा रिसर्च के आधार पर कहा जा रहा है.

मॉर्टन ट्रॉमहोल्ट ने मास्टर की अपनी थीसिस में लिखा है, "ज़्यादातर लोग रोज़ाना फ़ेसबुक का इस्तेमाल करते हैं, पर उन्हें इसके नतीजों की जानकारी नहीं है. इस रिसर्च में यह पाया गया है कि फ़ेसबुक के इस्तेमाल से आपकी खुशी कम हो जाती है."

ट्रॉमहोल्ट ने साल 2015 के अंत में 1,095 लोगों पर अपना अध्ययन किया. इसमें आधे लोगों से कहा गया कि वे एक हफ़्ते तक फ़ेसबुक से दूर रहें.

...तो इसका नतीजा क्या हुआ?

गुदगुदी करने पर आदमी की तरह क्यों हंसते हैं चिम्पैंज़ी?

गुदगुदी करने पर आदमी की तरह क्यों हंसते हैं चिम्पैंज़ी?

कभी आपने सोचा है कि हमें हंसी क्यों आती है? शरीर के किसी ख़ास हिस्से को छूने पर गुदगुदी क्यों होती है?

नहीं सोचा ना?

तो चलिए, आज हंसी और गुदगुदी की ही बात करते हैं.

इंसानों के पुरखे बंदरों के रिश्तेदार थे, ये तो हम सब जानते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि इंसान को हंसने का हुनर भी बंदर परिवार से ही विरासत में मिला है.

हम ख़ुश होते हैं तो हंसते हैं. कोई बात अच्छी लगती है तो मुस्कुराते हैं. तो क्या ये सब चिम्पैंज़ी, बोनबोन जैसे प्राइमेट्स यानी वानर परिवार के सदस्यों के साथ भी होता है?

गुदगुदी करने पर आदमी की तरह क्यों हंसते हैं चिम्पैंज़ी?

गुदगुदी करने पर आदमी की तरह क्यों हंसते हैं चिम्पैंज़ी?

कभी आपने सोचा है कि हमें हंसी क्यों आती है? शरीर के किसी ख़ास हिस्से को छूने पर गुदगुदी क्यों होती है?

नहीं सोचा ना?

तो चलिए, आज हंसी और गुदगुदी की ही बात करते हैं.

इंसानों के पुरखे बंदरों के रिश्तेदार थे, ये तो हम सब जानते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि इंसान को हंसने का हुनर भी बंदर परिवार से ही विरासत में मिला है.

हम ख़ुश होते हैं तो हंसते हैं. कोई बात अच्छी लगती है तो मुस्कुराते हैं. तो क्या ये सब चिम्पैंज़ी, बोनबोन जैसे प्राइमेट्स यानी वानर परिवार के सदस्यों के साथ भी होता है?

अकेलेपन के सन्नाटे को चीरते 5 सच

अकेलेपन के सन्नाटे को चीरते 5 सच

हम सब ने अपनी ज़िंदगी में कभी न कभी ख़ुद को अकेला महसूस किया होगा. आज दुनिया भर में अकेलेपन को लेकर बड़ी चर्चा हो रही है.

ब्रिटेन में एक मंत्री को सरकारी विभागों में अकेलेपन से जूझ रहे लोगों की समस्याओं को सुलझाने की ज़िम्मेदारी दी गई है.

दिक़्क़त ये है कि अकेलेपन को लेकर तमाम मिथक गढ़े गए हैं. ये सच्चाई से परे हैं. मगर बहुत से लोग इन पर यक़ीन करते हैं.

इमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

अकेलेपन को समझने के लिए हमें पहले इन मिथकों की सच्चाई जाननी होगी.

 

चंद्रयान-2 है इसरो का 'मिशन पॉसिबल'

चंद्रयान-2 है इसरो का 'मिशन पॉसिबल'

भारत की अंतरिक्ष ऐजेंसी इसरो ने दूसरे चंद्र अभियान के लिए चंद्रयान-2 भेजने की घोषणा कर दी है.

इसरो के अध्यक्ष डॉक्टर के सिवन ने कहा कि 15 जुलाई को तड़के क़रीब 2.51 बजे चंद्रयान-2 उड़ान भरेगा और अनुमान है कि 6 या 7 सितंबर को वो चांद पर उतर जाएगा.

2008 में भारत ने पहले चंद्रयान को चंद्रमा की कक्षा में भेजने में सफलता हासिल की थी, हालांकि ये यान चंद्रमा पर उतरा नहीं था.

पूरे विश्व की निगाहें भारत के इस अंतरिक्ष मिशन पर लगी हुई हैं. भारत 10 साल में दूसरी बार चांद पर जाने वाला अपना मिशन पूरा करने जा रहा है. भारत में इस मिशन को लेकर काफ़ी उत्साह है.

नासा पर्यटकों के लिए खोलेगा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन

नासा पर्यटकों के लिए खोलेगा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन

पर्यटक अगले साल से नासा के अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर जा सकेंगे. इसके लिए उन्हें एक रात के 35 हज़ार डॉलर चुकाने होंगे.

अमरीका की अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा है कि वो स्पेस स्टेशन को पर्यटन और दूसरे व्यापारिक उपक्रमों के लिए खोल रही है.

अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन की उप निदेशक रॉबिन गैटेंस ने कहा कि हर साल कम अवधि के दो प्राइवेट अंतरिक्ष मिशन भेजे जाएंगे. इन मिशन का खर्च निजी कंपनियां उठाएंगी.

नासा ने बताया कि प्राइवेट अंतरिक्ष-यात्रियों को अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन तक जाने के लिए तीस दिन तक का वक्त मिलेगा. वो अमरीका के स्पेसक्राफ्ट से यात्रा करेंगे.

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