आप 'टालूराम' हैं तो ये ज़रूर पढ़ें
क्या आपको काम टालने की आदत है? काम पूरा करने में अक्सर देर हो जाती है? मैं तो अक्सर काम टालती थी, काम पूरा करने में देर लगाती थी.
इसलिए मैने तय किया है कि मैं दिमाग़ी प्रशिक्षण लूँगी ताकि भटकते मन से पैदा होने वाली समस्याओं से निजात पा सकूँ. लेकिन क्या ये संभव है?
अपनी एकाग्रता बढ़ाने और मन को भटकने से रोकने के लिए मैं अमरीका की बोस्टन अटेंशन एंड लर्निंग लैब में पहुँची. दिमाग़ पर शोध करने वाले वैज्ञानिक माइक ईस्टरमैन और जो दीगुटिस ने पिछले सात साल में दिमाग़ का प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किया है जो एकाग्रता बढ़ाता है.
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मुझे सिर में हर सेकंड बिजली के हलके झटके लगाए जाने थे, वो भी पूरे आठ मिनट तक.
कुलबुलाहट के बीच मैं काली बड़ी कुर्सी पर आराम पाने की कोशिश कर रही थी.
शोधकर्ता माइक ईस्टरमैन ने मुझसे कहा, "बस आपको आराम से बैठने की ज़रूरत है." उनके लिए ये कहना आसान था, क्योंकि उनके हाथ में इलेक्ट्रिक मैगनेट जो था.
बदलाव की उम्मीद
अब तक पीटीएसडी से ग्रस्त बुज़ुर्ग अमरीकी सैनिकों पर ये तरीके काफ़ी सफल रहे हैं. पीटीएसडी (पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) यानी मानसिक सदमे के बाद अवसाद के शिकार हुए लोगों में एकाग्रता की समस्या देखी गई है.
लेकिन मैं जानना चाहती थी कि क्या सामान्य व्यक्ति के मन के भटकाव में सुधार हो सकता है? और यदि ऐसा है तो क्या वो मेरी मदद कर पाएँगे?
दीगुटिस ने मुझे बताया, "कुछ मस्तिष्क प्रशिक्षण कंपनियों के दावों के बावजूद सच यह है कि सामान्य दिमाग़़ को औसत से अधिक या उच्च स्तर पर ले जाना मुश्किल है."
लेकिन यदि शोधकर्ताओं-बोस्टन लैब के ऑनलाइन कॉनसन्ट्रेशन टेस्ट और सवाल-जबाब प्रमाणित कर दें कि सुधार की गुंजाइश है, तो फिर प्रयास किया जा सकता है.
मन के लक्ष्य
मैं काम ठीक से शुरू करती थी, लेकिन बीच में ही छोड़ देती थी. सालों पहले मेरे भाई ने ये कहना शुरु कर दिया था, "आह ! ये केरोलीन का काम लगता है." एक पुराना दोस्त मुझे 'बटरफ़्लाई ब्रेन' कह कर पुकारता था.
मैं इस समस्या से जूझने वाली अकेली नहीं थी.
एक अनुमान के मुताबिक 80 प्रतिशत छात्र और लगभग 25 प्रतिशत वयस्क ध्यान केंद्रित नहीं कर पाने की समस्या से ग्रस्त हैं. स्मार्टफ़ोन, सोशल मीडिया ने तो इस समस्या और बढ़ा दिया है.
पिछले 10 साल में न्यूरोसाइंस में हुए शोध बताते हैं कि दिमाग़ पूरी उम्र लचीला रहता है. दिमाग़ के जिन क्षेत्रों को अधिक इस्तेमाल किया जाता है, वो ज़्यादा बड़े हो जाते हैं और जिन्हें उपयोग में नहीं लाया जाता, वो सिकुड़ जाते हैं.
मन पर काबू
तो पहले बात की जाए काम टालने की. मन भटकने और काम टालने की असल वजह क्या है?
पहले तो यह साफ़ होना चाहिए कि काम टालने से रचनात्मकता बढ़ती नहीं, केवल आपका तनाव, बीमारी और रिश्तों की उलझनें बढ़ती हैं.
कनाडा की कार्लटन यूनिवर्सिटी के मनोचिकित्सक टिम साइचल कहते हैं, "हमारा दिमाग़ तत्काल इनाम या फल मिलने वाली चीजों का चयन करता है."
उनके अनुसार, "टालमटोल वह स्थिति है जब हम खुद से कहते हैं कि फ़िलहाल, मैं अभी ऐसे ही अच्छा महसूस कर रहा हूँ. इसलिए बहुत ज़रूरी होने पर भी, हम जूझने वाले या मुश्किल काम को टालते रहते हैं, ये जानते-बूझते हुए भी कि बाद में इसका ख़ासा नुकसान होने वाला है."
लैब में टेस्ट शुरू हुआ. पहले टेस्ट में ईस्टरमैन ने मुझसे कहा, "बेट्टी पर बटन बिलकुल नहीं दबाना." मुझे लगा आसान है.
स्क्रीन पर एक के बाद एक पुरुष चेहरे आए और हर चेहरे पर बटन दबाना था. एकमात्र महिला (बेट्टी) का चेहरा आने पर बटन नहीं दबाना था.
मुश्किलें
टेस्ट के दौरान जब मैने बेट्टी का चेहरा देखा तो तो मुझे लगा कि मेरे पास अपने हाथ को निर्देश देने के लिए पर्याप्त समय नहीं था.
बाद में मुझे पता लगा कि इस टेस्ट में मेरा स्कोर बहुत ख़राब था. मेरी ग़लतियां करने की दर 51 प्रतिशत थी, सामान्य व्यक्ति की 20 प्रतिशत होती है.
अगले दिन जब मैं इलेक्ट्रोमैगनेटिक टेस्ट के लिए लैब पहुंची तो पांच मिनट बाद ही मुझे चिड़चिड़ाहट होने लगी.
कुल मिलाकर ये आठ मिनट लंबा टेस्ट था. इस तरह कई टेस्ट हुए.
इन टेस्ट की मदद से समयानुसार जैसा करने की ज़रूरत हो, दिमाग़ के रचनात्मकता और एकाग्रता वाले अलग-अलग हिस्सों को अलग-अलग समय पर सक्रिय रखने की प्रैक्टिस की जाती है.
यदि एकाग्रता की ज़रूरत वाले काम करते समय रचनात्मकता या सपने देखने का दिमाग़ी हिस्सा अतिसक्रिय हो तो, एकाग्रता घट जाती है.
इन प्रैक्टिस टेस्ट के ज़रिए, दिमाग़ का रचनात्मक हिस्सा सुस्त रहता है और एकाग्रता के लिए ज़िम्मेदार हिस्सा अतिसक्रिय रहता है.
मुझे मानना होगा कि चार दिन की प्रैक्टिस के बाद मैं अब ज़्यादा शांत और फ़ोकस्ड थी. तो क्या चार दिन में मेरा दिमाग़ बदल गया था?
अगला क़दम क्या?
शोधकर्ताओं का कहना था मैं ध्यान केंद्रित करने वाले स्रोतों को ज़्यादा बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर रही थी और यही वजह थी कि ये सब आसान लग रहा था.
लेकिन दीगुटिस ने कहा कि इन अभ्यास सत्रों का असर कुछ ही हफ़्तों तक रहेगा और लगातार बेहतर करने के लिए मुझे घर पर ही कुछ और अभ्यास करने होंगे.
मैं बोस्टन ये सवाल लेकर गई थी कि क्या मेरे 'चंचल मन' को डिसिप्लिन किया जा सकता है? और लैटने पर मेरा जवाब था - ''हाँ
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