चंद्रयान के बारे में ये सब आपको कहीं भी नहीं पता चलेगा, पढ़ लो.
आज की रात देश की नींद के वक़्त चंद्रयान – 2 चांद पर उतरेगा. बहुत से लोग होंगे जो जागकर ये जानना चाह रहे होंगे कि क्या हो रहा है, भारत के वैज्ञानिकों की मेहनत कितनी रंग लाई और सबसे ज़रूरी बात? चांद पर हमें क्या मिलने वाला है?
लेकिन इन सब बातों का जवाब तो हमें सितम्बर 6 और 7 की दरम्यानी रात मिलेगा. अनुमानित समय है 1:30 बजे से 2:30 बजे के बीच. लेकिन हम ये भी जानना चाह रहे हैं कि भारत के श्रीहरिकोटा से 22 जुलाई को लॉन्चिंग के बाद चंद्रयान ने कब क्या किया? किस-किस घड़ी चंद्रयान ने कौन-कौन से करतब दिखाए? कैसे पृथ्वी से उठकर चंद्रयान धीरे-धीरे चंद्रमा की ओर पहुंचा? हम बताएंगे आपको.
लॉन्चिंग से लेकर अब तक की कहानी क्या है?
15 जुलाई : चंद्रयान 2 की लॉन्चिंग की तय तारीख. मगर लॉन्च से कुछ घंटे पहले खबर आई कि लॉन्चिंग नहीं होगी. इसरो यानी इंडियन स्पेस रीसर्च आर्गेनाईजेशन ने बताया, चंद्रयान की सवारी गाड़ी यानी रॉकेट में जो ईंधन है, उसके प्रेशर में कुछ गड़बड़ है. रिस्क नहीं ले सकते. इस रॉकेट का नाम GSLV (जियो सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) मार्क – 3 था.
22 जुलाई : लॉन्च विंडो का आखिरी दिन. ये विंडो कैसी. एक तय समय के अंदर ही रॉकेट भेज सकते हैं. ताकि वो स्पेस के ट्रैफिक से गुजरता हुआ मुकाम तक पहुंचे. हमारे चंद्रयान के लिए ये विंडो 22 जुलाई को खत्म हो रही थी. मगर उससे पहले ही लॉन्च हो गया. कुछ ही घंटों में चंद्रयान के तीनों रॉकेट अलग हो गए. उससे पहले यान पृथ्वी की कक्षा में स्थापित हो चुका था. ये अभी सीधी रेखा में चंद्रमा की तरफ नहीं जाने वाला था. उससे पहले चंद्रयान को धरती के चारों ओर चार चक्कर काटने थे. दूरी हासिल करने के लिए.
चंद्रयान की लॉन्चिंग (पीटीआई)
24 जुलाई : चंद्रयान ने पृथ्वी की कक्षा के चक्कर लगाने शुरू किए. ये 6 अगस्त तक चला. चार चक्कर. हर चक्कर में चंद्रयान का दायरा बढ़ता गया. इस दौरान कई बार पृथ्वी से वैज्ञानिकों ने चंद्रयान की स्थिति में बदलाव किया. जैसे जैसे चंद्रयान पृथ्वी से दूर होता गया. चंद्रमा करीब आता गया.
7 अगस्त से 1 सितम्बर: पृथ्वी की कक्षा छोड़े वक्त हो गया था. अब बारी थी चंद्रमा की कक्षा में स्थापित होने की. 3 लाख 84 हजार किलोमीटर का सफर. 1 सितंबर को पूरा हुआ.
2 सितम्बर : दोपहर के 1:15 बजे. चंद्रयान अब दो हिस्सों में बंट गया. पहला, ऑर्बिटर, जिसका काम है, ऑर्बिट यानी कक्षा में चक्कर काटना. दूसरा लैंडर, जो चंद्रमा की जमीन पर उतर रहा है. इस लैंडर का हमने नाम रखा है विक्रम. मशहूर स्पेस साइंटिस्ट विक्रम साराभाई के नाम पर. ऑर्बिटर अपने रास्ते आगे बढ़ा. विक्रम लैंडर ने कलाबाजियां कीं. इस दौरान नजर टाली. चांद की सतह पर. जहां उतरना है, वहां का नक्शा रिवाइज करने के लिए. और फिर सफर शुरू किया.
ये सफर 7 सितंबर को रात 1.30 बजे यानी आज रात अपने सबसे अहम पड़ाव पर पहुंचेगा. विक्रम लैंडर आखिरी 35 किलोमीटर का सफर तय करेगा. इसी को साइंटिस्ट बार बार सबसे खौफनाक 15 मिनट कह रहे हैं. वजह, चंद्रमा की जमीन पर विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग. यानी हौले से सतह पर रुकना.इसके लिए हरेक सेकंड का हिसाब रखा जाएगा. कैसे. ऐसे
लैंडिंग का हिसाब क्या है?
1.30.00 सफर शुरू
1.40.00 चंद्रयान चंद्रमा की जमीन से चंद्रयान 7.4 किलोमीटर ऊपर
1.40.38 जी महज 38 सेकंड बाद चंद्रयान 5 किलोमीटर ऊपर
1.42.07 अब विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह से महज 400 मीटर दूर होगा. ये मंड़राना शुरू करेगा. नीचे जमीन पर बैठे हमारे इसरो के साइंटिस्ट फैसला लेंगे. लैंडिग के बारे में. इसके बाद विक्रम लैंडर को सतह की तरफ 300 मीटर और मूव किया जाएगा. अब दूरी बची 100 मीटर की. एक बार मंड़राना शुरू. एक आखिरी बार फैसला, कहां उतरना है. लैंडिंग स्पॉट.
1.43.12 चंद्रयान अब 10 मीटर दूर होगा. एक बार और लैंडिंग साइट का क्विक व्यू.
1.43.25 चंद्रयान चंद्रमा की सतह पर लैंड करेगा.
फिर शुरू होगी इलाहाबादी लहजे में कहें तो कंपनी गार्डन की सैर. विक्रम लैंडर से निकलेगा रोवर. रोवर यानी घूमने वाला. इस मशीन को नाम दिया गया है प्रज्ञान. अर्थात अर्जित किया गया ज्ञान. बुद्धि, विवेक.
इस बार चंद्रयान की लैंडिंग पर इतनी बहस क्यों?
इसरो के चेयरमैन के सिवन ने कहा है कि विक्रम लैंडर की लैंडिंग के 35 किलोमीटर की ऊंचाई से उतरने से लेकर बाद के पंद्रह मिनट बेहद डरावने होंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत का बनाया हुआ चंद्रयान चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने जा रहा है. भारत ने पहले जो चंद्रयान अन्तरिक्ष में भेजा था – यानी चंद्रयान – 1 – उसने चंद्रमा की सतह पर क्रैश लैंडिंग की थी.
यहां ये तथ्य भी बेहद ज़रूरी है कि बीते समय में चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग – मतलब धीमे-धीमे लैंडिंग – करने के बहुत सारी कोशिशें नाकाम भी हुई हैं. अपनी लैंडिंग के ठीक पहले विक्रम लैंडर की स्पीड 6 किलोमीटर प्रति सेकंड होगी. मतलब वो एक घंटे में लगभग 22 हज़ार किलोमीटर तय करने की रफ़्तार से चल रहा होगा. बड़े-बड़े हवाई जहाज़ों से भी 20-22 गुना तेज़.
चंद्रयान-2 के बारे में जानकारी देते इसरो के चेयरमैन के. सिवन (पीटीआई)
लेकिन इन महज़ पंद्रह मिनटों के अन्दर विक्रम लैंडर को अपनी स्पीड घटाकर 2 मीटर प्रति सेकंड लानी होगी. यानी एक घंटे में 7 किलोमीटर तय करने की रफ़्तार तक. अगर विक्रम लैंडर ठीक तरीके से और बिना नुकसान पहुंचाए ऐसा कर जाता है, तो ही वह चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कर सकेगा, वरना मुश्किल खड़ी हो सकती है.
इसी साल अप्रैल में इजराइल ने चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने की कोशिश की थी, लेकिन इजराइल का स्पेसक्राफ्ट अपनी स्पीड कम कर पाने में असफल हुआ और चंद्रमा की सतह से जाकर जोर से टकरा गया. अखबारों में प्रकाशित आंकड़े बताते हैं कि अब तक कुल मिलाकर चांद पर मानव, रोवर या उपग्रह भेजने की 109 कोशिशें हो चुकी हैं, जिनमें से 41 प्रयास सफल नहीं हो पाए. ऐसे में के सिवन की चिंता जायज़ है. जानकार ये भी मानते हैं कि कई मौकों पर अंतरिक्ष में स्पीड का और लैंडिंग के समय चांद के गुरुत्त्वाकर्षण का सही अंदाज़ नहीं लग पाता है. ऐसा इस वजह से कि ये सभी यंत्र भेजे तो चांद पर जाते हैं, लेकिन इनको बनाना इनकी टेस्टिंग पृथ्वी पर होती है.
क्या है चंद्रयान-2 का काम?
ये सवाल सभी पूछ रहे हैं. और जवाब हम देंगे. चंद्रयान के कुल तीन प्रमुख हिस्से हैं – ऑर्बिटर, विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर. पहले जान लीजिए कि ये हिस्से क्या क्या हैं?
1. ऑर्बिटर : चंद्रयान का इकलौता जो चांद की सतह पर नहीं उतरेगा. उससे लगभग 100 किलोमीटर दूर रहकर चांद की कक्षा में चक्कर काटता रहेगा. एक साल तक 2379 किलो का ये ऑर्बिटर घूमते हुए पढ़ाई करेगा. क्या पढ़ाई?
लैंडर और रोवर एक साथ चन्द्रमा पर टहलते हुए.
पहली पढ़ाई, नक्शेबाजी.
ऑर्बिटर का Terrain Mapping Camera चंद्रमा का नक्शा बनाएगा. इसकी जमीन का एक थ्री डी फोटो भी तैयार करेगा. इस फोटो से चंद्रमा पर उतर रहे विक्रम लैंडर को मदद मिलेगी. ऊबड़ खाबड़ को पहचानने की. मगर जमीन तो मौसम की मार से बदलती भी है. ऑर्बिटर साल भर तक चंद्रमा की जमीन में आ रहे बदलाव भी दर्ज करेगा.
दूसरी पढ़ाई. खनिज की खोज
इन्द्रधनुष देखा है? सात रंग मिले जुले. वही होता है स्पेक्ट्रम और उससे ही बनता है चंद्रयान का ये उपकरण. Chandranyaan 2 में एक large Area Soft X-ray Spectrometer है. स्पेक्ट्रोमीटर यानी वो यंत्र जो प्रकाश की मदद से पता लगाता है. समझ लीजिए कि ये Spectrometer देखता है कि चांद की सतह से जो सूरज का प्रकाश लड़कर लौट रहा है. उस प्रकाश को देखता है और पता चलता है कि चन्द्रमा की सतह के नीचे क्या क्या है? कौन सा मिनरल है? कौन सा खनिज है? क्या कुछ नया छिपा हुआ है जो अब तक नहीं मिला?
तीसरी पढ़ाई. फोटोबाजी
चंद्रयान का High Resolution Camera.नाम से ही पता चल रहा है कि बहुत शानदार और अच्छी तस्वीरें खींचेगा. लेकिन इन तस्वीरों का क्या मतलब? मतलब ये कि चांद पर उतर रहे विक्रम लैंडर को इस कैमरे की मदद से पता करना है कि उतरे कहां? इस कैमरे का एक और मकसद ये कि हम चंद्रयान की नज़रों से देख सकें कि चांद की सतह दिखती कैसी है? जिसकी फोटो आज हमारे आपके बीच आई
चौथी और सबसे ज़रूरी पढ़ाई. पानी की खोज.
चंद्रयान का Imaging infrared Spectrometer. यानी एक और स्पेक्ट्रोमीटर. रंगों का ही काम. चंद्रयान के इस उपकरण की सबसे बड़ी भूमिका है. ये भी रंग ही देखेगा. और जहां नीला रंग दिखेगा, बताएगा कि देखो, वो है चंद्रमा पर पानी.
पांचवी पढ़ाई. ज़मीन को जानना.
और इस पढ़ाई के लिए लगा हुआ है Dual Frequency Synthetic Aperture Radar. बस चांद की सतह की फोटो से काम नहीं चलेगा. न ही उसके नक़्शे से. चांद की सतह को और करीब से जानने का काम करेगा ये रडार और बताएगा कि सतह कैसी है? कितनी मोटी है? बर्फ है? तो कितनी बर्फ है? ताकि सतह पर उतर रहा विक्रम लैंडर किसी परेशानी में न पड़े
छठी पढ़ाई. मौसम का भी तो हालचाल लेना है.
चांद की ज़मीन और चांद का पानी तो हो गए. लेकिन चांद का माहौल कैसा है? मौसम कैसा है? कितनी गर्मी-कितनी ठण्ड-कितना पानी? ये भी तो पता करना ज़रूरी है. और ये काम करेगा चंद्रयान – 2 का Atmospheric Composition Explorer, मौसम का हालचाल माहौल, सब बताएगा.
2. विक्रम लैंडर :कुल वजन 1471 किलो. और सबसे ज़रूरी काम क्या? प्रज्ञान रोवर को चांद की सतह पर पहुंचाना और दूसरा ज़रूरी काम ये कि चांद की सतह पर मौजूद रहकर प्रज्ञान रोवर, कक्षा में घूम रहे ऑर्बिटर और भारत के इसरो के सेंटर में बैठे वैज्ञानिकों के बीच तालमेल बिठाना. सतह पर चहलकदमी कर रहे रोवर से और ऊपर कक्षा में टहल-टहलकर पढ़ाई कर रहे ऑर्बिटर से जानकारियां आएंगी लैंडर के पास. और लैंडर ये जानकारियां भेजेगा पृथ्वी पर. लेकिन विक्रम लैंडर के भी हिस्से कमाल. क्या हिस्से?
विक्रम लैंडर
एक है Radio Anatomy of Moon Bound Hypertensive Atmosphere छोटे में कहें तो रम्भा. काम करेगा चांद की सतह पर एकदम छोटे-छोटे बदलावों का पता लगाने का. बड़े परिवर्तनों का पता तो ऊपर टहल रहा अपना ऑर्बिटर कर ही रहा है. लेकिन महीन काम करने के लिए है ये रेडियोमीटर.
अगला है Chandra’s Surface Thermo-Physical Experiment यानी CHEST. यानी चंद्रयान का थर्मामीटर. विक्रम लैंडर का वो हिस्सा है, जो चांद की सतह के अन्दर का बुखार नापेगा. इसमें हीट सेंसर लगे हैं. ये चंद्रमा की सतह से 10 सेंटीमीटर अन्दर जाकर चंद्रमा का तापमान नापेगा.
भूकंप नापेगा Instrument for Lunar Seismic Activity यानी इलसा. Seismic की बात हो तो समझ जाइए कि भूकंप की बात हो रही है. तो बात साफ़. चांद पर भूकंप आया? छोटा या बड़ा? इसका पता ये उपकरण लगा लेगा.
3. प्रज्ञान रोवर : यानी चंद्रयान की गाड़ी. वजन 27 किलो. चंद्रमा की धरती पर उतरे विक्रम लैंडर के पेट से निकलेगा. छः पहियों की मदद से लैंडर के आसपास के 500 मीटर में घूमेगा. और घूम-घूमकर पढ़ाई करेगा. ज्यादा गहरी वाली पढ़ाई. प्रज्ञान रोवर ऑर्बिटर और लैंडर से मिली जानकारी की एकदम नज़दीक से तस्दीक करेगा. पानी खोजना है तो पानी के पास जाएगा. और इसके पास औजार क्या होंगे? दो हैं.
विक्रम लैंडर से बाहर निकलता प्रज्ञान रोवर
पहला तो है Alpha Particle X-ray Spectrometer यानी APXS. हमारी-आपकी हड्डियों का एक्सरे होता है, लेकिन ये स्पेक्ट्रोमीटर ज़मीन का Xray करेगा. चांद की ज़मीन का. और बताएगा कि सोडियम, मैगनीशियम, एल्यूमिनियम, सिलिका, कैल्शियम, टाईटैनियम और आयरन जैसे मिनरल चांद पर मौजूद हैं या नहीं? और हैं तो कितनी मात्रा में हैं?
और दूसरा है Laser Induced Breakdown Spectroscope यानी LIBS. इसमें लगा हुआ है लेज़र. हल्का फुल्का नहीं. मजबूत वाला. ये चांद की ज़मीन पर तरह-तरह के रेडिएशन का पता करेगा. और कोई तत्व बहुत ज्यादा मात्रा में मौजूद है तो उसका भी पता लगा लेगा.
आपने तो जान लिया कि चंद्रयान के कितने हिस्से हैं. और अब है आखिरी और बड़ा सवाल. क्या है चंद्रयान का काम? चंद्रयान का सबसे ज़रूरी काम है पानी खोजना. ये चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करने जा रहा है. यहां सूरज की रौशनी सबसे कम पहुंच रही है. और जहां आजतक किसी देश के स्पेसक्राफ्ट ने नहीं लैंड किया. अनुमान लगाया जा रहा है कि इस ध्रुव पर जो काले धब्बे दूर से दिख रहे हैं, वे पानी के हैं. इसके अलावा सारे रीसर्च होंगे. और प्रयोग होंगे. लेकिन पानी खोजना ज़रूरी है. पिछले चंद्रयान – 1 को पानी के कुछ कण मिले थे. इस बार अगर पक्के से पानी मिल गया तो कह सकते हैं कि बाकी अन्तरिक्ष की खोजबीन आसान हो जाएगी. कैसे? क्योंकि योजना बतायी जा रही है कि अगर चांद पर पानी मिल जाता है तो चांद से आगे की यात्राएं की जा सकेंगी. चांद होगा एक स्टॉप. जहां से लोग आगे के अन्तरिक्ष में आना-जाना कर सकेंगे
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