दैत्याकार चींटियाँ हुआ करती थीं
अमरीकी वैज्ञानिकों की एक टीम ने ऐसी दैत्याकार चींटियों की प्रजाति का जीवाश्म खोज निकाला हैं जिनके बारे में आज तक दुनिया अनजान थी.
वैज्ञानिकों ने चींटी की इस प्रजाति का नाम दिया है ”टाइटैनोमिरमा लुबई”.
इन चींटियों की लम्बाई दो इंच यानि पांच सेटीमीटर से भी ज़्यादा थी.
वैज्ञानिकों का मानना है कि आज के मुकाबले जब धरती ज़्यादा गर्म थी तब चींटियों की इस प्रजाति ने या तो यूरोप से उत्तरी अमरीका की ओर या फिर उत्तरी अमरीका से यूरोप की ओर पलायन किया.
रॉयल सोसाइटी जरनल प्रोसिडिंग में प्रकाशित लेख में कनाडा और अमरीकी वैज्ञानिकों की संयुक्त टीम ने लिखा कि ”टाइटैनोमिरमा लुबई” धरती पर मौजूद रही सबसे विशाल चींटियों की प्रजाति है, जो दूसरी प्रजातियों के मुकाबले ज़्यादा वज़न उठाती थीं.
उत्तरी अमरीका व यूरोप आज के मुकाबले काफी नज़दीक हुआ करते थे
इसकी प्रजातियों के जीवाश्म यूरोप में मिली चीटियों के जीवाश्म जैसे ही हैं.
ब्रिटिश कोलम्बिया की सिमोन फ्रासेर युनिवर्सिटी के ब्रूस आर्चिबाल्ड ने बीबीसी को बताया कि ये चींटियां कैसे रहती थीं और क्या खाती थीं, इस बारे में तो कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन बिना किसी संदेह की गुंजाइश के ये बेहद प्रभावशाली नमूने हैं.
शोधकर्ताओं का कहना है कि लगभग पांच करोड़ साल पहले उत्तरी अमरीका व यूरोप आज के मुकाबले काफी नज़दीक हुआ करते थे और तब इन चींटियों ने ज़मीन के रास्ते एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप का सफर किया होगा.
सबसे आश्चर्यजनक बात ये है कि इन चींटियों को सफर के लिए उष्णकटिबन्धीय जलवायु की ज़रुरत हुई होगी. आज ये विश्व के सर्वाधिक ठंडे क्षेत्रों में आता है और चींटियां हमेशा से ही उष्णकटिबन्धीय प्राणी रही हैं.
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