एन्टीबायटिक प्रतिरोधक एन्ज़ाइम मिला

एन्टीबायटिक प्रतिरोधक एन्ज़ाइम मिला

अमरीकी वैज्ञानिकों ने बैक्टीरिया के भीतर एक ऐसी प्रतिरक्षात्मक प्रणाली की खोज की है जिससे वह एन्टीबायटिक दवाओं से लड़ पाता है.

आशा है कि इस खोज से मौजूदा इलाज की प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सकेगा.

‘साइंस’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुए इस अध्ययन ने पाया कि बैक्टीरिया नाइट्रिक ऑक्साइड पैदा करता है जो बहुत तरह की एन्टीबायटिक दवाओं के असर को ख़त्म कर देता है.

ब्रिटन के एक विशेषज्ञ का कहना है कि अगर नाइट्रिक ऑक्साइड को रोका जा सके तो ख़तरनाक संक्रमणों से जूझना आसान हो जाएगा.

एन्टीबायटिक दवाओं के प्रति जीवाणुओं की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती जा रही है और विशेषज्ञ नए इलाज विकसित करने पर ज़ोर दे रहे हैं.

नया शोध

यह शोध न्यूयॉर्क के एक विश्वविद्यालय में किया गया है. बैक्टीरिया एक सूक्ष्म अणु पैदा करता है जो नाइट्रोजन और ऑक्सीजन के एक-एक अणु से मिलकर बना होता है. और इसी से बैक्टीरिया में एन्टीबायटिक दवाओं से लड़ने की क्षमता पैदा हो जाती है.

हमारे पास इसका एक आसान रास्ता है. हमें नई एन्टीबायटिक दवाएं खोजने की ज़रूरत नहीं. इसके स्थान पर हम पहले से मौजूद एन्टीबायटिक दवाओं की गतिविधि बढ़ा सकते हैं जिससे वो कम मात्रा में अधिक प्रभावी हो सकें.

डॉ येवगैनी नुडलर, शोध दल के प्रमुख

शोधकर्ताओं ने पाया कि जैसे ही शरीर में एन्टीबॉयटिक दवा पहुंचती है बैक्टीरिया उससे लड़ने के लिए नाइट्रिक ऑक्साइड पैदा करने लगता है.

उन्होने यह भी देखा कि अगर नाइट्रिक ऑक्साइड पैदा न होने दिया जाए तो हल्की एन्टीबायटिक दवाएं भी काम करने लगती हैं.

कम मात्रा में अधिक असर

इस शोध का नेतृत्व डॉ येवगैनी नुडलर ने किया है. उनका कहना है कि ऐसी नई दवाएं विकसित करना बड़ा मुश्किल है जो ऐन्टीबायटिक प्रतिरोध से लड़ सकें.

डॉ नुडलर ने कहा, “हमारे पास इसका एक आसान रास्ता है. हमें नई एन्टीबायटिक दवाएं खोजने की ज़रूरत नहीं. इसके स्थान पर हम पहले से मौजूद एन्टीबायटिक दवाओं की गतिविधि बढ़ा सकते हैं जिससे वो कम मात्रा में अधिक प्रभावी हो सकें”.

ब्रिटन के रॉयल हैम्पशायर काउंटी हॉस्पिटल में सूक्ष्म जैविकी और संक्रमित रोगों के विशेषज्ञ डॉ मैथ्यू ड्राइडन कहते हैं, “अगर नाइट्रिक ऑक्साइड पैदा करने वाले ऐन्ज़ाइम को रोका जा सके तो चिकित्सा के क्षेत्र में यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रगति होगी. विशेषकर इसलिए क्योंकि हम नई तरह की एन्टीबायटिक दवाएं नहीं बना पा रहे हैं

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