हिटलर की आत्मकथा: कॉपीराइट हटा तो क्या होगा?

हिटलर की आत्मकथा: कॉपीराइट हटा तो क्या होगा?

जर्मन तानाशाह एडोल्फ़ हिटलर की आत्मकथा माइन काम्फ़ (मेरा संघर्ष) पर 2015 के अंत में कॉपीराइट खत्म हो जाएगा.

क्या होगा जब जर्मन अधिकारी इस किताब के प्रकाशन और वितरण पर नियंत्रण नहीं रख पाएँगे.

माइन काम्फ़ पर से कॉपीराइट खत्म होने का मतलब है कि जर्मनी में कोई भी इसे छाप सकेगा.

क्या हो सकता असर, पढ़ें पूरा लेख
जर्मनी में लेखक की मृत्यु के 70 साल बाद (2015 के अंत में) किसी किताब का कॉपीराइट खत्म होता है. इसके बाद किसी के भी पास उसे छापने का हक़ होता है. हिटलर ने 1945 में आत्महत्या की थी.

बीबीसी रेडियो 4 के एक नए कार्यक्रम में इस विषय पर विस्तृत बहस हुई. 1936 में माइन काम्फ़ का अंग्रेज़ी में अनुवाद करने वाले जेम मर्फ़ी के पोते जॉन मर्फ़ी कहते हैं, “हिटलर का इतिहास उन्हें कमतर आंकने का इतिहास है और लोगों ने इस किताब को कमतर ही आंका है.”

वो कहते हैं, “इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए क्योंकि इसके गलत अर्थ निकाले जा सकते हैं. हिटलर ने 1920 के दशक में लिखी इस किताब में जो कुछ लिखा था, उसमें से कई बातें उसने करके भी दिखाईं. अगर लोगों ने इसे ज़्यादा ध्यान से पढ़ा होता तो वो ख़तरा पहचान सकते थे.”

1923 में ‘बीयर हॉल’ की तख़्तापलट की असफल कोशिश के बाद हिटलर को देशद्रोह के आरोप में म्यूनिख़ की एक जेल में रखा गया था और यहीं उन्होंने आत्मकथा लिखी थी.

आत्मकथा में उन्होंने अपने नस्ली और यहूदी विरोधी विचार सामने रखे थे.

माइन काम्फ़ का असर

एक दशक बाद जब हिटलर सत्ता में आए, तो यह एक प्रमुख नाज़ी किताब बन गई और इसकी एक करोड़ 20 लाख प्रतियां प्रकाशित की गईं.

सरकार इस किताब को नवविवाहित जोड़ों को देती थी. यही नहीं, सुनहरी पत्ती वाली इस किताब को सभी वरिष्ठ अधिकारी अपने घरों में रखते थे.

दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति पर अमरीकी सेना ने जब नाज़ियों के प्रकाशक इहर वरलॉग पर कब्ज़ा किया तो माइन काम्फ़ के सारे अधिकार बवेरिया स्टेट (बवेरिया की सरकार) के पास चले गए.

बवेरिया स्टेट ने सुनिश्चित किया कि जर्मनी में इस किताब का पुनर्प्रकाशन कुछ विशेष परिस्थितियों में ही हो सकेगा.

कैसे रुकेगा प्रकाशन?
जब 2015 में इस किताब पर कॉपीराइट खत्म होगा तो अधिकारी इसे छपने से कैसे रोक पाएंगे?

कुछ लोग सवाल करते हैं कि क्या वाकई हर कोई इसे प्रकाशित करना चाहेगा? न्यू यॉर्कर अख़बार के अनुसार, "ये किताब बड़े-बड़े शब्दों से भरी हुई है, इसमें नियम-क़ानूनों, इतिहास की बारीकियों का ध्यान नहीं रखा गया है और ये वैचारिक पेचीदगियों से भरी हुई है. नियो-नाज़ी और गंभीर इतिहासकार, दोनों ही इससे बचते हैं."

ये किताब भारत में लोकप्रिय है, ख़ासकर हिंदू राष्ट्रवाद के प्रति झुकाव रखने वाले राजनेताओं के बीच.

मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के अत्राई सेन ने रेडियो 4 पर कहा, "इसे अहम सेल्फ़-हेल्प किताब माना जाता है. यदि आप इसमें से यहूदी विरोधी हिस्सा निकाल दें तो, ये किताब ऐसे आम आदमी की कहानी है जो क़ैद में है और दुनिया को जीतने का सपना देखता है और इसे पूरा करने की कोशिश करता है."

क्या है डर?

बवेरिया स्टेट के शिक्षा और संस्कृति मंत्रालय के प्रवक्ता लुटविच यंगर कहते हैं, “इसी किताब का नतीजा था कि लाखों लोग मारे गए, लाखों प्रताड़ित हुए, पूरा क्षेत्र युद्ध की चपेट में आ गया. इसे भी ध्यान में रखना होगा और आप ऐसा तब कर सकते हैं, जब आप किताब के कुछ हिस्सों को उचित ऐतिहासिक टिप्पणियों के साथ पढ़ें.”

कॉपीराइट ख़त्म होने के बाद म्यूनिख का इस्टीट्यूट ऑफ़ कंटेम्परेरी हिस्ट्री टिप्पणियों के साथ इस किताब की नया संस्करण जारी करने वाला है. इसमें किताब के मूल अंशों के साथ नीचे फुटनोट में टीकाएं होंगी.

मसलन अगर किताब में किसी जगह जब हिटलर अपनी बात रखते हैं तो साथ ही कमेंटरी होगी जिसमें यदि तथ्यों से कोई छेड़छाड़ हुई है या फिर उन्हें जानबूझकर छिपाया गया है तो उसका ज़िक्र होगा.

नाज़ी शासन के शिकार लोगों ने इसका विरोध किया है और बवेरिया सरकार ने भी इंस्टीट्यूट को सपोर्ट करने से इनकार कर दिया है.

किताब पर प्रतिबंध लगाना शायद सर्वोत्तम नीति न हो. न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, "नई पीढ़ी को यदि नाज़ी विचारधारा से बचाना है तो इसका सबसे बेहतर तरीका हिटलर की कथनी का खुला विरोध करना होगा, न कि उसके कहे को क़ानून की मदद से दबाकर रखना.

जॉन मर्फ़ी भी मानते हैं कि दुनियाभर में किताब पर प्रतिबंध लगाना मुमकिन नहीं है.

वे कहते हैं, “बवेरिया सरकार को इस पर नियंत्रण बनाए रखने के बजाय अपना पक्ष रखना चाहिए. उन्हें अपना रुख बताना होगा, क्योंकि आधुनिक युग में किताब हासिल करना कोई मुश्किल काम नहीं है.”

रोडिया कार्यक्रम 'पब्लिश ऑर बर्न' के प्रिजेंटर क्रिस बॉल्बी कहते हैं कि सांकेतिक कार्रवाई अब भी असरदार होगी.

कॉपीराइट खत्म होने के बाद बवेरिया सरकार की योजना है कि इस मामले में नस्लीय घृणा को बढ़ावा देने के ख़िलाफ़ क़ानून के तहत मुकदमा चलाया जाएगा.

इमेज कॉपीरइटGETTY

लुटविच यंगर कहते हैं, “हमारे विचार से हिटलर की विचारधारा नस्ली विद्वेष फ़ैलाने के प्रावधानों के तहत आती है. गलत हाथों में यह ख़तरनाक किताब है.

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