सनस्क्रीन आपके लिए कितना सुरक्षित है?

सनस्क्रीन आपके लिए कितना सुरक्षित है?

हर मौसम की कुछ ख़ास ज़रूरत होती है.

बारिश में छाता ज़रूरी है तो सर्दी में गर्म कपड़े और सनस्क्रीन शायद गर्मियों के लिहाज़ से बेहद ज़रूरी.

लेकिन सनस्क्रीन का चलन बीते कुछ सालों में बढ़ा है. बाज़ार में तरह-तरह के विकल्प हैं. त्वचा के हिसाब से, रंगत के अनुसार और बेशक ज़रूरत के आधार पर भी.

डॉक्टर भी ये बताते हैं कि पराबैंगनी किरणों से स्किन या त्वचा का कैंसर होने का ख़तरा होता है और इसलिए भी सनस्क्रीन का इस्तेमाल किया जाना चाहिए

लेकिन कई बार सनस्क्रीन के सुरक्षित होने को लेकर सवाल भी उठते रहे हैं?
साल की शुरुआत में अमरीकी फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने सनस्क्रीन में इस्तेमाल किए जाने वाले 16 में से 14 रासायनिक तत्वों को 'सुरक्षित और कारगर तत्वों' की सूची से हटा दिया. जिसके बाद इस बात को लेकर आशंका और बढ़ गई कि क्या सनस्क्रीन पूरी तरह सुरक्षित हैं.

क्या सनस्क्रीन सुरक्षित हैं?
सर गंगाराम अस्पताल में डर्मेटोलॉजिस्ट रोहित बत्रा कहते हैं कि सनस्क्रीन सुरक्षा के लिए होती है. सूरज की पराबैंगनी किरणों से यह त्वचा को सुरक्षित रखती है. हालांकि डर्मेटोलॉजिस्ट रोहित बत्रा ये ज़रूर कहते हैं कि सनस्क्रीन की संतुलित मात्रा का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

रोहित कहते हैं कि आजकल बाज़ार में जो सनस्क्रीन बिक रहे हैं वो फ़ीज़िकल सनस्क्रीन होते हैं जिनमें ज़िंक ऑक्साइड या टाइटेनियम ऑक्साइड होता है. ये मेटल पार्टिकल होते हैं, जो त्वचा के ऊपर एक परत बना लेते हैं, जो बाद में पसीने और नहाने के दौरान धुल जाती है लेकिन त्वचा के भीतर नहीं जाता.

रोहित कहते हैं कि अभी तक तो भारत में ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है जिसमें ये पाया गया हो कि सनस्क्रीन के इस्तेमाल से किसी को कैंसर हो गया हो.

लेकिन वो इस बात से पूरी तरह इनकार नहीं करते हैं कि ऐसा हो ही नहीं सकता.

वो कहते हैं "कुछ रासायनिक तत्व ऐसे होते हैं जो नुक़सान पहुंचा सकते हैं."

मैक्स सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल में ऑन्कोलॉजी विभाग की डॉ. मीनू वालिया भी सनस्क्रीन की वजह से कैंसर होने की आशंका को सिरे से ख़ारिज करती हैं.

वो कहती हैं "बहुत सारे अध्ययनों में पाया गया है कि सनस्क्रीन के इस्तेमाल से अल्ट्रा वायलेट किरणों से सुरक्षा मिलती है और इसके नियमित इस्तेमाल से स्किन कैंसर होने की आशंका काफ़ी कम हो जाती है. सूरज की किरणें (अल्ट्रावायलेट रेज़ ए और बी दोनों ही) ख़तरनाक होती हैं और इससे कैंसर का ख़तरा हो सकता है. साथ ही कई क़िस्म की स्किन से जुड़ी समस्याएं भी हो सकती हैं."

डॉ मीनू वालिया कहती हैं कि सनस्क्रीन अल्ट्रावायलेट किरणों को त्वचा में प्रवेश करने से रोकता है. ऐसे में ये कहना कि सनस्क्रीन लगाने से किसी को कैंसर हो गया हो, इसके कोई प्रमाण तो नहीं हैं लेकिन ऐसा हो सकता है कि कोई सनस्क्रीन कसी त्वचा के अनुरूप ना हो और रीएक्शन हो जाए.

वो कहती हैं "यूरोपीय देशों में भारत की तुलना में स्किन कैंसर होने की आशंका अधिक होती है लेकिन वहां पर लोग जागरुक हैं और इसकी वजह से वहां स्किन कैंसर के मामलों में बीते कुछ सालों में काफ़ी कमी आई है."

इस आधार पर हम सनस्क्रीन से होने वाले लाभ को तीन वर्गों में बांट सकते हैं...

- स्किन कैंसर होने के ख़तरे को कम करता है

- सनबर्न से सुरक्षित रखता है

- बढ़ती उम्र के लक्षण त्वचा पर जल्दी नज़र नहीं आते

सनस्क्रीन का चुनाव कैसे करें
डॉ मीनू वालिया कहती हैं कि बाज़ार में कई तरह के सनस्क्रीन मौजूद हैं लेकिन आपकी त्वचा के लिए कौन सा सनस्क्रीन सही होगा ये तय किया जाना ज़रूरी है.

सनस्क्रीन ख़रीदते समय एसपीएफ़ (SPF) देखना ना भूलें.

वो कहती हैं "सनस्क्रीन ख़रीदते समय स्किन प्रोटेक्शन फ़ैक्टर का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है. यह जितना ज़्यादा होता है, सनस्क्रीन सूरज की किरणों से उतनी ही अधिक सुरक्षा प्रदान करती है. आमतौर पर एसपीएफ़ 15 वाली क्रीम आसानी से मिल जाती हैं लेकिन एसपीएफ़ 30 वाली क्रीम को चुनना सबसे बेहतर होता है. इससे अधिक एसपीएफ़ हो तो और अच्छा लेकिन इससे कम न हो."

तो क्या सनस्क्रीन के अलावा पराबैंगनी किरणों से बचने का कोई विकल्प नहीं ?
आमतौर पर सूरज की तेज़ रौशनी में निकलने से पहले अल्ट्रा किरणों से सुरक्षा के लिए सनस्क्रीन लगाने की ही सलाह दी जाती है लेकिन इसके अलावा भी कुछ तरीक़े हैं जिन्हें आज़माया जा सकता है.

डॉमीनू कहती हैं कि कुछ तरीक़े हैं जिन्हें अपनाया जा सकता है.

- जिस समय पराबैंगनी किरणें सबसे अधिक प्रभावी हों उस दौरान बाहर निकलने से बचें.

- शरीर को ज़्यादा से ज़्यादा ढककर ही बाहर निकलें

- चश्मे और हैट का इस्तेमाल करें

लेकिन सनस्क्रीन की परत विटामिन डी को रोकती है?

विटामिन डी शारीरिक विकास के लिए बेहद ज़रूरी है. ऐसे में एक मत ये भी है कि सनस्क्रीन के इस्तेमाल से विटामिन डी शरीर को नहीं मिलता.

लेकिन डर्मेटोलॉजिस्ट रोहित बत्रा इस तथ्य पर अलग नज़रिया रखते हैं. वो कहते हैं "अगर आपको ये लगता है कि विटामिन डी कपड़े पहनकर लिया जाता है तो यह ग़लत है. विटामिन डी लेने का मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि हम पूरे कपड़े पहनकर धूप में खड़े हो जाएं. विटामिन डी लेने का सही तरीक़ा यह है कि शरीर का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा धूप के संपर्क में आए. ऐसे में सनस्क्रीन विटामिन डी के लिए कोई रुकावट नहीं."

वहीं डॉ. मीनू का मानना है कि सुबह दस बजे से लेकर शाम चार बजे के वक़्त को छोड़ दिया जाए तो भी पर्याप्त धूप ली जा सकती है. इसके अलावा वो विटामिन डी के सप्लीमेंट्स के इस्तेमाल से भी इनक़ार नहीं करती हैं.

कितना सामान्य है स्किन कैंसर
डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार नॉन-मेलानोमा और मेलानोमा स्किन कैंसर के मामले बीते कुछ सालों में तेज़ी से बढ़े हैं. मौजूदा समय में हर साल 2-3 मिलियन नॉन-मेलानोमा और 132,000 मेलानोमा स्किन कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं.

जैसे-जैसे ओज़ोन परत कमज़ोर हो रही है वैसे-वैसे वायुमंडल का सुरक्षात्मक आवरण भी कमज़ोर हो रहा है. जिसकी वजह से पराबैंगनी किरणें धरती पर अधिक पहुंच रही हैं.

किन लोगों को होता है अधिक ख़तरा ?
- गोरी त्वचा वालों को

- नीली, हरी या भूरी आँखों वालों को

- हल्के रंग के बालों वाले लोगों को

- जिनकी त्वचा सूरज की रोशनी में टैन होने के बजाय जल जाती हो

- जिनके शरीर पर बहुत अधिक मस्से और तिल हों

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