हर ख़ुशबू का पता लगाना कितना मुश्किल

हर ख़ुशबू का पता लगाना कितना मुश्किल

फ्रांस्वा रॉबर्ट 40 साल से इत्र के पेशे में हैं. फ्रांस में उनका परिवार चार पीढ़ियों से यह काम कर रहा है.

वह 14 साल की उम्र में ही पारिवारिक इत्रफरोशी के कारोबार से जुड़ गए थे. उन्होंने अपने पिता का हाथ बंटाते हुए उनसे इस पेशे की बारीकियां सीखीं.

वह कहते हैं, "मैं ऐसे परिवार में पला-बढ़ा जहां मेरे पिता इत्र बनाते थे, मेरे दादा इत्र बनाते थे, मेरे परदादा इत्र बनाते थे. मुझे इसका जुनून है."

रॉबर्ट ब्रिटेन में अंतरराष्ट्रीय इत्र ब्रांड क्विंटेसेंस का कारोबार संभालते हैं. यह कंपनी हर साल औसत 400 तरह की ख़ुशबुएं बनाती है.

इनमें से 30 से 40 ख़ुशबुओं का इस्तेमाल इत्र के रूप में किया जाता है. बाकी ख़ुशबुएं शैंपू, शावर जेल, बॉडी लोशन और दूसरे उत्पादों में इस्तेमाल की जाती हैं.
ब्रिटेन में क्विंटेसेंस की फैक्ट्री में सालाना 50 से 60 टन इत्र तैयार होता है. इसका करीब 70 फीसदी हिस्सा यूरोप के दूसरे बाज़ारों में निर्यात कर दिया जाता है.
ख़ुशबू जो याद रह जाए
वह कहते हैं, "दुनिया भर के बाज़ारों में हर साल 1,500 से 1,800 तरह के इत्र उतारे जाते हैं. तीन साल बाद उनमें से केवल 200 रह जाते हैं."

"मगर कुछ इत्र 10 साल बाद भी बिकते रहते हैं. ऐसे उत्पाद विकसित करने के लिए मौलिकता की ज़रूरत होती है. यही हमारी विशेषता है. हम इसी के लिए जाने जाते हैं."

हर इत्रफरोश के काम करने का अपना ढंग होता है. रॉबर्ट का तरीका उनके पिता से प्रभावित है.

फ्रांस्वा रॉबर्ट फूलों की ख़ुशबू या किसी एक ख़ुशबू का इस्तेमाल नहीं करते. वह विशेष रूप से तैयार एक मिश्रण का इस्तेमाल करते हैं जो उनके परिवार की ख़ासियत है. यह नुस्खा एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी को सौंपती रही है.

वह कहते हैं, "इत्र में 50 से लेकर 200 सामग्रियों तक का मिश्रण होता है. हमारा काम उस मिश्रण को एकदम सही बनाना है."

फ्रांस्वा रॉबर्ट चाइप्रे (Chypre) इत्र पसंद करते हैं. यह बेहद ही ख़ास सुगंध है जिसे लगाने पर भीनी-भीनी ख़ुशबू आती है.

इसमें सूक्ष्म, सूखी और लकड़ी जैसी ख़ुशबू होती है. इत्रों में ये ख़ास हैं लेकिन आम लोग इनके बारे में कम जानते हैं.

रॉबर्ट कहते हैं, "वे रोमांचित कर देने वाले इत्र हैं, उनमें बहुत रहस्य हैं. यह फूलों की ख़ुशबू नहीं है जो मुझे बहुत उबाऊ लगती है."
ख़ुशबू में रोमांच होना चाहिए
"उनमें लकड़ी की सुगंध है, जानवरों की ख़ुशबू है, कई सारे डार्क नोट्स भी हैं जो देर तक रहते हैं और महक बिखेरते रहते हैं. यह मेरी शैली है."

"हमारी कोशिश हमेशा रोमांच पैदा करने की होती है. इत्र की शीशी खोलने पर आप उसे सूंघते हैं. कोई चीज आपको अच्छी लगती है तो आप आप उसे फिर सूंघना चाहते हैं."

फ्रांस्वा रॉबर्ट ने दक्षिणी फ्रांस में 2 साल रहकर वहां ख़ुशबुओं के बारे में पढ़ाई की थी, तब जाकर वह 300 अलग-अलग सुगंधों को याद कर पाए थे.

क्विंटेसेंस की जूनियर क्रिएटिव परफ्यूमर एल्डी डूरंडे कहती हैं, "30 साल बाद भी फ्रांस्वा मुझसे कहते हैं कि वह कुछ परिणामों से हैरान हो सकते हैं."

रॉबर्ट डूरंडे को होनहार परफ्यूमर बताते हैं. डूरंडे कहती हैं, "अच्छी ख़ुशबुओं के लिए त्वचा पर परीक्षण बहुत महत्वपूर्ण है."

"बोतल से उनको सूंघने की जगह अगर त्वचा पर फैलाया जाए तो एकदम अलग ख़ुशबू आती है."

यह देखना भी अहम है कि दिन भर में, दो घंटे में, चार घंटे में, शाम में वे (ख़ुशबू) कैसे बदलते हैं.

रॉबर्ट का कहना है कि वह और डूरंडे अच्छे पार्टनर हैं क्योंकि सुगंधों की व्याख्या करने का उनका तरीका एक जैसा है.

वैसे एक-दूसरे की राय को चुनौती देना और अलग तरीके से काम करने वाले व्यक्ति के साथ परीक्षण करना भी महत्वपूर्ण है.

वह कहते हैं, "हर इत्रफरोश की अपनी पसंदीदा सामग्री होती है. यदि दो या तीन इत्रफरोश साथ काम कर रहे हों तो वे तीन अलग-अलग विचार लेकर आएंगे."

"भले ही वे एक जैसी सामग्रियों का इस्तेमाल कर रहे हों लेकिन उनकी अपनी व्याख्या होगी. यह अनुपात, संतुलन और इत्रफरोश की अपनी शैली पर निर्भर करता है."
गंध के प्रति संवेदनशीलता
इत्रफरोश के लिए ज़रूरी नहीं कि गंध के प्रति अति संवेदनशील होना फ़ायदेमंद हो. लेकिन गंध को याद रखना और अलग-अलग ख़ुशबुओं की शब्दावली होना बहुत ज़रूरी है.

आनुवंशिक गुणों के कारण भी कुछ लोग गंध के प्रति ज़्यादा संवेदनशील होते हैं. इसका चरम गंधातिसंवेदिता (hyperosmia) है.

ऐसे व्यक्तियों के लिए ज़िंदगी बड़ी कठिन होती है. इससे पीड़ित व्यक्ति को कॉफी की गंध भी बड़ी भारी लगती है. इसलिए ऐसे लोग इत्र के साथ काम नहीं कर सकते.

कुछ लोग सुगंध के प्रति कम संवेदनशील होते हैं. वे फेनिथाइल अल्कोहल (फूलों की गंध वाली) जैसी तेज़ गंध को सूंघकर अपनी घ्राण-स्मृति को बेहतर कर सकते हैं.

इस तरह का प्रशिक्षण पार्किंसंस के रोगियों को दिया जाता है, जो गंध की समझ खो देते हैं.

इससे रोगियों की तीव्र गंध पहचानने की क्षमता में सुधार होता है. सामान्य गंध के प्रति भी उनकी संवेदनशीलता बढ़ती है.

यानी कुछ गंधों के साथ प्रशिक्षण से दूसरे कई गंध पहचानने की क्षमता भी बढ़ती है.
ख़ुशबू पहचानने की क्षमता
अपनी घ्राण-शक्ति और गंधों की स्मृति बढ़ाने के लिए ये दो काम कर सकते हैं-

एक, उन सुगंधों को सूंघने से शुरुआत करें जिनसे आप परिचित हैं. उन्हें याद रखने के लिए उनकी व्याख्या करने का अभ्यास करें.

इससे आप दुनिया में कहीं भी रहें और कितने ही वर्षों के बाद फिर से उस गंध को सूंघें, आप उनको पहचान लेंगे.

दो, अपनी परिचित सुगंध की विभिन्न किस्मों को देखिए. हम सभी संतरे की ख़ुशबू को पहचानते हैं, लेकिन उसकी विभिन्न किस्मों की अपनी ख़ास गंध होती है.

उनकी विविधताओं से परिचित होइए और उनकी व्याख्या करने की कोशिश कीजिए. जैसे- "यह मुझे स्पेन के सेविले संतरे की याद दिलाता है."

सुगंध को जगह और समय से जोड़ना भी उनको याद रखने में मददगार होता है. जैसे छुट्टी पर कोई खाना या पैदल चलना उस जगह की याद से जुड़ जाता है.
ख़ुशबू जो कुछ याद दिला दे
रॉबर्ट हमेशा अपने आस-पास की गंधों को लेकर सजग रहते हैं. वह कहते हैं, "मैं जुनूनी नहीं हूं, लेकिन मैं सजग हूं."

अंजीर के पेड़ों के बीच छत पर बैठना उनकी ग्रीस यात्रा से जुड़ी हुई याद है. वह उस याद को ख़ुशबू की प्रेरणा के रूप में इस्तेमाल करते हैं. वह कहते हैं, "आप कुछ मिश्रण बनाने की कोशिश करते हैं जो उस याद को ताज़ा कर दे."

किसी इत्र के कई अवयव होते हैं. आप सबसे प्रभावी अवयव को सूंघकर इत्र की शीशी खरीद लेते हैं.

त्वचा पर लगाने पर वह कुछ मिनटों तक रहती है. फिर आप उसे नहीं सूंघते. आपके आसपास के दूसरे लोग उसका अनुभव करते हैं.

कोई इत्र अपनी ख़ुशबू कब तक बिखेरता है? डूरंडे कहती हैं, "यह जानना वास्तव में बहुत कठिन है कि ख़ुशबू कब ख़त्म होती है."

"वास्तव में यह ख़ुद आपको तय करना होता है कि क्या ख़ुशबू आनी बंद हो गई है. यह कोई सटीक विज्ञान नहीं है. यह विज्ञान और कला का मिश्रण है

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