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अल्ज़ाइमर की नई दवा को कंपनी ने क्यों छिपाए रखा?

अल्ज़ाइमर की नई दवा को कंपनी ने क्यों छिपाए रखा?

जब पिछले साल जनवरी में जब दवाइयां बनाने वाली अमरीकी कंपनी फाइज़र ने अल्ज़ाइमर और पर्किंसन जैसी बीमारियों के लिए नई दवा न बनाने का ऐलान किया तो मरीज़ों और शोधकर्ताओं के बीच एक निराशा छा गई थी.

इससे पहले यह कंपनी अल्ज़ाइमर के लिए वैकल्पिक दवा तलाशने में लाखों डॉलर ख़र्च कर चुकी थी. लेकिन फिर उन्होंने तय किया कि ये पैसा कहीं और दूसरे काम में ख़र्च किया जाएगा.

फाइज़र ने इसे सही ठहराते हुए कहा था कि हमें इस ख़र्च को वहां लगाना चाहिए जहां हमारे वैज्ञानिकों की पकड़ ज़्यादा मज़बूत है.

'महिलाओं के लिए वायग्रा' को मंज़ूरी

'महिलाओं के लिए वायग्रा' को मंज़ूरी

अमरीकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने महिलाओं की कामेच्छा को बढ़ाने की एक दवा को मंज़ूरी दे दी है. इसे 'फीमेल वायग्रा' माना जा रहा है.

फ़्लिबैनसेरिन नाम की इस दवा को स्प्राउट फॉर्मेस्यूटिकल्स ने बनाया है.

हाल ही में इस दवा को एफडीए की परामर्श समिति ने पास कर दिया है.

मासिक धर्म निवृत्ति से पहले महिलाओं की कामेच्छा को फिर से हासिल करने के लिए मस्तिष्क के कुछ निश्चित रसायनों को बढ़ाने के मकसद से इस दवा को बनाया गया है.

सेहत पर अन्य मामूली असर डालने के लिए इस दवा की आलोचना होती रही है.

World Blood Donor Day: रक्तदान और उससे जुड़े मिथकों का सच

World Blood Donor Day: रक्तदान और उससे जुड़े मिथकों का सच

विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो ज़्यादातर सेहतमंद लोग रक्तदान करते हैं.

दुनिया में हर जगह लोग रक्तदान करते हैं. रक्तदान करने के लिए लोगों में जागरूकता फैलाई जाती है और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को रक्तदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.

वैसे तो रक्त दान के लिए कई नियमों का पालन किया जाता है. लेकिन लोगों के बीच इससे जुड़े कई मिथक और आधे-अधूरे सच भी जिन्हें वो मानते आ रहें हैं.

शाकाहारी लोग रक्तदान नहीं कर सकते

वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में मानव शुक्राणु बनाने का दावा किया है.

वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में मानव शुक्राणु बनाने का दावा किया है.

ब्रिटेन में न्यूकासल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में मानव शुक्राणु बनाने का दावा किया है. वैज्ञानिकों का मानना है कि दुनिया में पहली बार हुए इस प्रयोग की सफलता से पुरुषों में बंध्यता या बाप नहीं बन पाने की समस्या को दूर करने में मदद मिल सकती है.न्यूकासल विश्वविद्यालय और नॉर्थईस्ट स्टेम सेल इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में स्पर्म या शुक्राणु विकसित करने के अपने सफल प्रयोग की रिपोर्ट विज्ञान पत्रिका 'स्टेम सेल एंड डेवलपमेंट' में प्रकाशित की है.

भारत में मिली नई प्रजाति की छिपकली

भारत में मिली नई प्रजाति की छिपकली

वैज्ञानिकों ने भारत में महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट के हरे-भरे पहाड़ों में एक नई प्रजाति की छिपकली की खोज की है.

छिपकली की प्रजाति के इस सरिसृप की खोज कोल्हापुर ज़िले के एक जीव-वर्गीकरण विशेषज्ञ वरद गिरी ने की है. इस प्रजाति का नाम सीनेमैसपिस कोल्हापुरेन्सिस रखा गया है.

वरद गिरी और उनके सहयोगियों ने अपनी खोज के बारे में इस माह के ज़ूटाक्सा जर्नल में प्रकाशित किया है.

हाल के दिनों में इस इलाक़े में खोजी गई छिपकली की यह तीसरी प्रजाति है.

भारत में मिला घोंसले बनाने वाला मेंढक

भारत में मिला घोंसले बनाने वाला मेंढक

भारत के एक वैज्ञानिक ने मेंढकों की तीन ऐसी दुर्लभ प्रजातियाँ ढूँढने का दावा किया है जो अपने अंडे देने के लिए घोंसले बनाते हैं.

मेंढक की ये प्रजातियां केरल और कर्नाटक की पश्चिमी पहाड़ी श्रंखलाओं के जंगलों में पाई जाती है जहाँ ख़ूब बारिश होती है.

दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉक्टर एसडी बीजू का कहना है कि ये छोटे-छोटे मेंढक 12 सेंटीमीटर तक लंबे होते हैं. ये मेंढक अंडे देने के बाद उन्हें गर्मी, शिकारी पक्षियों और कीड़ों से बचाने के लिए घोंसले बनाते हैं.

भारत में वैज्ञानिकों ने डायनासोर के सैकड़ों अंडों को ढूँढ निकाला है

भारत में वैज्ञानिकों ने डायनासोर के सैकड़ों अंडों को ढूँढ निकाला है

भारत में वैज्ञानिकों ने डायनासोर के सैकड़ों अंडों को ढूँढ निकाला है, ये अंडे साढ़े छह करोड़ साल पुराने हो सकते हैं.

ये अंडे संयोगवश वैज्ञानिकों के हाथ लगे, वे तमिलनाडु में एक नदी के किनारे प्राचीन धरोहरों की तलाश में खुदाई कर रहे थे.

खुदाई के दौरान उन्हें जीवाश्म बन चुके अंडों के ढेर मिले जिनके नमूने दुनिया भर के विशेषज्ञों को भेजे गए जिन्होंने पुष्टि की है कि ये डायनासोर के ही अंडे हैं.

अंडों का आकार फुटबॉल जितना बड़ा है, वैज्ञानिकों का मानना है कि मादा डायनासोर ने अंडे देने के बाद उन्हें रेत में दबा दिया होगा.

किस देश के लोग करते हैं दफ्तर में सबसे ज़्यादा काम?

किस देश के लोग करते हैं दफ्तर में सबसे ज़्यादा काम?

अक्सर आप लोगों को शिकायत करते सुनते हैं, कि

'काम बहुत ज़्यादा है'.

'दफ़्तर में देर तक रुकना पड़ता है'.

'यार, मेरे ऑफ़िस जाने का टाइम तो फ़िक्स है, मगर लौटने का नहीं'.

इन बातों से ये लगता है कि ऑफ़िस का टाइम अंतहीन सिलसिला है. काम इतना कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता.

भारत में ये मुश्किल इसलिए है, क्योंकि यहां काम के अधिकतम घंटे कितने होंगे, इसकी कोई आधिकारिक पाबंदी नहीं है. अलग-अलग कंपनियों में अलग-अलग नियम है. कहीं हफ़्ते में 60 घंटे काम होता है, तो कहीं 40-45 घंटे.

अंतरिक्ष में सबसे ज़्यादा कचरा किसने फैलाया

अंतरिक्ष में सबसे ज़्यादा कचरा किसने फैलाया

नासा (द नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) ने भारत की एंटी-सैटेलाइट मिसाइल परीक्षण से निकले मलबे से इंटरनेशनल स्पेस सेंटर (आईएसएस) को पैदा हुए ख़तरे को भयानक बताया है.

नासा प्रमुख जिम ब्राइडेन्स्टाइन ने कहा कि भारत ने जिस उपग्रह को निशाने पर लिया वो कई टुकड़ों में टूट गया.

उनका कहना है कि इनकी संख्या 400 से भी अधिक है और इससे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर ख़तरा पैदा हो गया है.

नासा टाउनहॉल में ब्राइडेन्स्टाइन ने बताया कि इससे पैदा हुए ज़्यादातर टुकड़े बड़े हैं. उन्होंने कहा कि नासा ने छोटे टुकड़ों को ट्रैक किया है और बड़े टुकड़ों को खोज की जा रही है.

अगर हम सब दिमाग़ बढ़ाने वाली गोली लेने लगें तो क्या होगा?

अगर हम सब दिमाग़ बढ़ाने वाली गोली लेने लगें तो क्या होगा?

फ़्रांस के मशहूर उपन्यासकार होनोरे डि बाल्ज़ाक मानते थे कि कॉफ़ी दिमाग़ को खोल देता है.

बाल्ज़ाक हर शाम पेरिस की गलियों को छानते हुए उस कैफे तक पहुंचते थे जो आधी रात के बाद तक खुला रहता था. कॉफ़ी पीते हुए वे सुबह तक लिखते रहते थे.

कहा जाता है कि बाल्ज़ाक एक दिन में 50 कप कॉफ़ी पी जाते थे.

भूख लगने पर बाल्ज़ाक चम्मच भर कॉफ़ी के दानों को चबा लेते थे. उन्हें लगता था कि ऐसा करने से उनके दिमाग़ में विचार ऐसे कौंधते हैं जैसे जंग के खाली मैदान में सेना की बटालियन मार्च करते हुए चली आ रही हो.

डायबिटीज़ में भारत अव्वल नंबर

डायबिटीज़ में भारत अव्वल नंबर

हर दस सेकेंड में दुनिया भर में किसी न किसी की डायबिटीज़ यानी मधुमेह से मृत्यु हो जाती है. उन्हीं दस सेकेंड में किन्हीं दो लोगों में इसके लक्षण पैदा हो जाते हैं.

पिछले साल दुनिया में इस बीमारी से मरने वालों की संख्या 38 लाख थी. यानी मरने वाले सभी लोगों का छह प्रतिशत. एक अनुमान के अनुसार इस समय दुनिया भर में 24 करोड़ 60 लाख लोग डायबिटीज़ से पीड़ित हैं और 2025 तक इस संख्या के 38 करोड़ हो जाने की आशंका है.

पीरियड्स में महिलाओं का दिमाग तेज़ हो जाता है?

पीरियड्स में महिलाओं का दिमाग तेज़ हो जाता है?

औरतों में माहवारी एक बुनियादी अमल है. यही क़ुदरती अमल उसे समाज में औरत का दर्जा दिलाता है. कहना ग़लत नहीं होगा कि इंसानी कायनात का दारोमदार इसी पर टिका है.

माहवारी से पहले और उसके दौरान महिला की अपने शरीर और ख़ुद से लड़ाई चलती रहती है. उसके मिज़ाज में बहुत से बदलाव नज़र आने लगते हैं. प्राचीन काल में इसे औरत को पड़ने वाले दौरे के तौर पर देखा जाता था.

यहां तक कि मिस्र से लेकर ग्रीस के दार्शनिकों का मानना था कि हर महीने औरत के मन में सेक्सुअल डिज़ायर का उफ़ान उठता है. जब ये डिज़ायर पूरी नहीं होती तो उसके शरीर से ख़ून का रिसाव शुरू हो जाता है.

बॉस की हां में हां मिलाना कितना फ़ायदेमंद

बॉस की हां में हां मिलाना कितना फ़ायदेमंद

हम सब किसी भी तरह के वाद-विवाद से दूर रहना चाहते हैं. जब हम किसी से असहमत होते हैं तब भी हम दोस्ती बनाए रखना चाहते हैं. हम अपने शब्दों और बॉडी लैंग्वेज से ऐसे संकेत देते हैं कि हम मिलकर रहना चाहते हैं.

लॉबोरो यूनिवर्सिटी में कन्वर्जेशन एनालिसिस की प्रोफ़ेसर एलिजाबेथ स्टॉकी कहती हैं, "हम दूसरों को मौके भी देते हैं. अपनी बातचीत को नियंत्रित रखते हैं और लोगों को अपनी बात मनवाने की कोशिश करते हैं."

ऑफ़िस में तो हम कतई नहीं चाहते कि कोई विवाद हो या किसी से मनमुटाव हो. जिनकी बगल में रोजाना 8 घंटे बैठना हो उनसे भला कौन झगड़ना चाहता है?

व्यायाम से बढ़ता है दिमाग़

व्यायाम से बढ़ता है दिमाग़

कैब्रिज़ विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के ताज़ा शोध में पता चला है कि नियमित व्यायाम से मस्तिष्क की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है.

शोध के नतीज़े नेशनल एकेडमी ऑफ़ साइंस की पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं. इसके मुताबिक़ चूहों पर किए गए स्मृति परीक्षण में व्यायाम का काफ़ी असर पड़ा.

जिन चूहों ने व्यायाम किया उनके मस्तिष्क के एक ख़ास हिस्से में नई कोशिकाएँ विकसित हुईं जबकि व्यायाम न करने वाले चूहों में ऐसा नहीं हुआ.

नई कोशिकाएँ

अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि चीज़ों को पहचानने की क्षमता में आए सुधार के पीछे इन नई कोशिकाओं का ही हाथ है.

तेज़ टाइपिंग करने वाले लोगों में ऐसा क्या जादू होता है

तेज़ टाइपिंग करने वाले लोगों में ऐसा क्या जादू होता है

जिन लोगों की टाइपिंग की रफ़्तार धीमी होती है, उन्हें की-बोर्ड पर दूसरों की थिरकती उंगलियां देखकर रश्क हो जाता है.

धीमी टाइपिंग करने वाले सोचते हैं कि काश! हमारी भी टाइपिंग स्पीड ऐसी ही होती. लेकिन क्या होता है तेज़ टाइपिंग सीखने का नुस्खा?

माना जाता है कि ऑनलाइन गेमिंग के शौक़ीनों की टाइपिंग की रफ़्तार सबसे ज़्यादा होती है.

फिनलैंड की ऑल्टो और ब्रिटेन की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ने दुनिया भर में क़रीब 1 लाख 68 हज़ार लोगों की टाइपिंग के तरीक़े पर बारीक़ी से ग़ौर किया.

बोल कर टाइप किया है कभी?

बोल कर टाइप किया है कभी?

अपने स्मार्टफोन पर अगर आपको टाइपिंग करने में अधिक समय लगता है तो आपके पास दो विकल्प हैं. आप चाहें तो अपनी आवाज़ रिकॉर्ड करके उसको लिखित शब्दों में बदल लें या फिर हैंडराइटिंग टूल का इस्तेमाल करें.

बोले हुए शब्दों की मदद से टाइपिंग आसान नहीं है, ख़ास तौर पर हिंदी में. अंग्रेजी में भी बोले हुए शब्दों के उच्चारण को समझने में आपका फ़ोन गड़बड़ियाँ करता है.

अगर गूगल वॉइस आपके काम नहीं आता है तो अपनी हैंडराइटिंग से टाइपिंग कर सकते हैं.

तेज़ी से पिघल रहा है ग्लेशियर

तेज़ी से पिघल रहा है ग्लेशियर

बीबीसी को ऐसे शोध के बारे में पता चला है जिसके अनुसार अंटार्कटिका के सबसे बड़े ग्लेशियरों में से एक अत्यधिक तेज़ी से पिघल रहा है.

शोध के अनुसार 10 वर्ष पहले यह ग्लेशियर जिस जिस रफ़्तार से पिघल रहा था, उसके मुक़ाबले अब यह चार गुना तेज़ी से पिघल रहा है.

उपग्रह की मदद से लिए गए आंकड़ों के मुताबिक़ पश्चिमी अंटार्कटिका स्थित पाइन आइलैंड ग्लेशियर हर साल 16 मीटर धंस रहा है.

वर्ष 1994 से अब तक ग्लेशियर की सतह 90 मीटर तक नीचे जा चुकी है. इसके कारण समुद्री जल स्तर को लेकर गंभीर परिणाम हो सकते हैं.

जीन ढूँढा तिन पाइयाँ

जीन ढूँढा तिन पाइयाँ

भारत के ज्यादातर लोगों में दो प्राचीन जेनेटिक समूहों का मिश्रण पाया गया है, ये दो जेनेटिक समूह एक दूसरे से काफ़ी भिन्न हैं.

भारत में किए गए अब तक सबसे बड़े जेनेटिक सर्वेक्षण के बाद विज्ञान पत्रिका 'नेचर' में एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है जिसमें कहा गया है कि भारत की कठोर सामाजिक संरचना के बावजूद दो अलग-अलग जेनेटिक समूह आपस में घुलमिल गए हैं.

भारतीय दुनिया की आबादी का लगभग 17 प्रतिशत हिस्सा हैं लेकिन जेनेटिक अध्ययन के मामले में भारतीय समुदाय पर इससे पहले ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है.

सूर्य से चलने वाली प्राचीन घड़ियां

सूर्य से चलने वाली प्राचीन घड़ियां

ब्रिटेन के इंचकोम आईलैंड के पास विशेष घड़ियां मिली हैं जो सूर्य की रोशनी के अनुसार चलती थीं.

इन घड़ियों को सनडायल कहा जाता है.

इन घड़ियों का इस्तेमाल ऑगस्टिनियन भिक्षु समय देखने के लिए करते थे और ये घड़ियां दीवारों पर ही खुदी होती थीं.

मध्य काल में ये भिक्षु संभवत: इन्हीं घड़ियों के आधार पर अपने सारे काम नियत समय पर करते थे.

इतिहासकारों का मानना है कि मध्यकालीन भिक्षु अपने सारे कामों में समय को बहुत महत्व देते थे. अब ये पता चल रहा है कि भिक्षु समय का पता कैसे लगाते थे.

ब्रिटिश सनडायल सोसाइटी का कहना है कि स्कॉटलैंड में ऐसे कम ही डायल मिले हैं.

'अलग-अलग सोएं खुश रहें'

'अलग-अलग सोएं खुश रहें'

अगर आपको अपने स्वास्थ्य और दांपत्य संबंधों को बेहतर रखना है तो अलग अलग सोने पर विचार करें.

विशेषज्ञों का कहना है कि एक ही बिस्तर पर सोने से पति पत्नी के बीच कई मामलों मसलन खर्राटे लेने और रज़ाई-तकिए को लेकर विवाद हो सकते हैं और इससे नींद खराब हो सकती है.

ब्रिटेन में नींद के मामलों के विशेषज्ञ डॉक्टर नील डॉक्टर स्टैनली बताते हैं कि एक ही बिस्तर पर सोने से दंपत्तियों को कई प्रकार की मुश्किलें हो सकती हैं.

एक अध्ययन से पता चला कि एक पलंग पर साथ सोने वाले दम्पत्तियों को औसतन नींद से जुड़ी 50 प्रतिशत अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ा.

पत्रिका में वीडियो विज्ञापन

पत्रिका में वीडियो विज्ञापन

अमरीका में पाठकों को जल्दी ही वह मिलने जा रहा है जिसकी उन्होंने कल्पना नहीं की थी - एक पत्रिका में वीडियो विज्ञापन.

Image captionएंटरटेनमेंट वीकली के इस विज्ञापन में सीबीएस टेलीविज़न का 40 मिनट का कार्यक्रम दिखाया जाएगा

यह मार्केटिंग की एक ऐसी तकनीक है, जिसे देखकर लगेगा कि यह हैरी पॉटर की दुनिया की कोई चीज़ है जो जीवंत हो उठी है.

हालांकि यह उस घड़ी की तरह नहीं होगी जिसे हैरी पॉटर पहना घूमता है.

दिमाग को पढ़ लेगा कंप्यूटर

दिमाग को पढ़ लेगा कंप्यूटर

ब्रिटेन के एक वैज्ञानिक समूह का कहना है कि उसने एक ऐसा कंप्यूटर प्रोग्राम विकसित कर लिया है जो मानव की स्मृति को पढ़ सकता है.

शोधकर्ताओं के अनुसार मस्तिष्क की गतिविधियों पर नज़र रखकर किसी भी शख़्स की स्मृति यानी याददाश्त को समझा जा सकता है.

वैज्ञानिकों ने अपने शोध को 'ईपीसोडिट मेमोरी' का नाम दिया है, इसका अर्थ होता है, व्यक्तिगत अनुभवों की स्मृति, जिसमें लोग क्या करते आए हैं और उसे कैसा मसहूस किया, इसकी जानकारी होती है.

स्मरणशक्ति
इस शोध का उद्देश्य उन मरीज़ों की मदद करना है जिन्हें स्मरणशक्ति से जुड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

शराब का खुमार महिलाओं पर ज़्यादा क्यों चढ़ता है

शराब का खुमार महिलाओं पर ज़्यादा क्यों चढ़ता है

दुनिया भर में ये माना जाता पुरुष महिलाओं की तुलना में ज़्यादा शराब पीते हैं. मोटेतौर पर महिलाओं की तुलना में पुरुष दोगुनी शराब पीते हैं.

लेकिन अब ये बीते दिनों की बात होती जा रही है, क्योंकि 1991 से 2000 के बीच में जन्मी महिलाएं उतनी ही शराब पी रही हैं जितना उनके पुरुष साथी, इतना ही नहीं पीने की रफ़्तार में ये पीढ़ी पुरुषों को पीछे छोड़ रही है.

अब आसान नहीं झूठ बोलना !

अब आसान नहीं झूठ बोलना !

झूठ बोलने वालों के लिए एक बुरी ख़बर है. ब्रितानी वैज्ञानिकों ने झूठ पकड़ने वाली एक नई तकनीक का विकास किया है.

इस तकनीक में झूठ पकड़ने के लिए बात करने के दौरान चेहरे पर आए बदलाव को पढ़ने की कोशिश की जाती है.

ब्रैडफ़र्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने किसी व्यक्ति के झूठ बोलने पर उसके चेहरे पर ख़ून के प्रवाह और हाव-भाव में आए बदलाव पर नज़र रखी.

चेहरा सब बोलता है
बीबीसी के विज्ञान संवाददाता मैट मैकग्रा के मुताबिक वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस तकनीक का इस्तेमाल पुलिस और अप्रावासन अधिकारी उस व्यक्ति को बिना बताए कर सकते हैं, जिससे पूछताछ हो रही हो.

जीवाणु 1,20,000 साल बाद दोबारा सक्रिय

जीवाणु 1,20,000 साल बाद दोबारा सक्रिय

वैज्ञानिकों को ऐसे बैक्टीरिया या जीवाणुओं को सक्रिय करने में सफलता मिली है जो कि कम-से-कम 1,20,000 वर्षों से निष्क्रिय पड़े थे.

Image captionजीवाणु एक लाख साल से निष्क्रिय थे

पूरा किस्सा ये है कि ग्रीनलैंड में ड्रिलिंग के दौरान क़रीब तीन किलोमीटर की गहराई से निकाले गए हिमखंड में दो अलग-अलग प्रजातियों के जीवाणु मिले थे.

हिमखंड के काल के हिसाब से दोनों जीवाणुओं को भी कम-से-कम एक लाख 20 हज़ार वर्ष पुराना माना गया.

सामान्य जीवाणुओं से क़रीब 50 गुना छोटे आकार के इन दोनों जीवाणुओं को बहुत ही धीरे-धीरे सामान्य माहौल में लाया गया. इस प्रक्रिया में महीनों लगे.

ब्रिटेन में होम्योपैथी का विरोध

ब्रिटेन में होम्योपैथी का विरोध

ब्रिटेन के सांसदों ने कहा है कि सरकार को होम्योपैथिक इलाज के लिए सहायता देना बंद करना चाहिए क्योंकि इस चिकित्सा पद्धति का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.

होम्योपैथी को सरकारी सहायता देना बंद करने की ये सिफ़ारिश ब्रिटिश संसद की विज्ञान और तकनीकी समिति की रिपोर्ट में की गई है. समिति के सदस्य अलग-अलग राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि होम्योपैथिक दवाएँ ऐसे पदार्थों की तरह हैं जो ऐसे मरीज़ों को दिए जाते हैं जिन्हें दवा की ज़रूरत नहीं होती लेकिन जिन्हें लगता है कि उन्हें दवा चाहिए.

लुप्त हो सकती हैं शार्क की कई प्रजातियाँ

लुप्त हो सकती हैं शार्क की कई प्रजातियाँ

शार्क की कई प्रजातियों पर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है. ये आकलन पर्यवारण संरक्षण के लिए बने अंतरराष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) ने किया है.

इस सूची में 64 प्रकार की शार्क का विवरण है जिनमें से 30 फ़ीसदी पर लुप्त होने का खतरा है.

आईयूसीएन के शार्क स्पेशलिस्ट ग्रुप से जुड़े लोगों का कहना है कि इसका मुख्य कारण ज़रूरत से ज़्यादा शार्क और मछली पकड़ना है.

हैमरहेड शार्क की दो प्रजातियों को लुप्त होने वाली श्रेणी में रखा गया है. इन प्रजातियों में अक्सर फ़िन या मीनपक्ष को हटाकर शार्क के शरीर से हटा कर फेंक दिया जाता है. इसे फ़िनिंग कहते हैं.

सबसे कारगर दवा पर भी भारी मच्छर

सबसे कारगर दवा पर भी भारी मच्छर

अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों का कहना है कि मलेरिया के इलाज के लिए दुनिया की सबसे कारगर दवा के प्रति प्रतिरोधकता के संकेत मिले हैं.

ब्रिटेन में पलकों का प्रत्यारोपण

ब्रिटेन में पलकों का प्रत्यारोपण

ब्रिटेन के शहर ग्रेटर मैनचेस्टर में एक महिला की आँखों की पलकों का सफल प्रत्यारोपण किया गया है. सर्जरी करने वाली टीम का दावा है कि ब्रिटेन में अपनी तरह का यह पहला प्रत्यारोपण है.

19 वर्षीया लुईस थॉमस को ऐसा इसलिए कराना पड़ा क्योंकि पलकों के बाल अधिक खींचने से उन्हें ट्राइकोटीलोमैनिया नामक बीमारी हो गई थी.

प्रत्यारोपण के दौरान लुईस के सर के बाल को उनकी आँखों की ऊपरी और निचली पलकों पर लगाया गया.

डॉक्टरों का कहना है कि प्रत्यारोपण के चार से छह महीने के बीच पलकों के बाल घने होना शुरू हो जाएँगे.

आकार में है सफलता की कुंजी

आकार में है सफलता की कुंजी

अगर वीडियो गेम खेलते समय आपको अच्छी ख़ासी मशक्कत करनी पड़ती है, तो इसका संबंध आपके मस्तिष्क के कुछ हिस्सों के आकार से हो सकता है.

ये कहना है एक शोध का. अमरीकी शोधकर्ताओं का दावा है कि वे मस्तिष्क के कुछ अहम हिस्सों का आकार माप कर ये आकलन कर सकते हैं कि कोई व्यक्ति वीडियो गेम खेलते समय कैसा प्रदर्शन कर सकता है.

सेरेब्रल कोरटेक्स पत्रिका में इन शोधकर्ताओं ने लिखा है कि उनकी खोज से सीखने की क्षमता में अंतर के अध्ययन पर व्यापक असर पड़ सकता है.वैसे प्रतिभा और मस्तिष्क के आकार के बीच संबंध की बात पर मोटे तौर पर सहमति है. इसके बावजूद यह एक जटिल मसला है.

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