क्या जूस पीने से सेहत ठीक रहती है?

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क्या जूस पीने से सेहत ठीक रहती है?

तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में हर काम फ़टाफ़ट होना चाहिए. तो, खान-पान ही तसल्ली से क्यों हो? फल खाने में वक़्त क्यों ज़ाया किया जाए?

फलों का जूस निकाला, पिया और चल पड़े काम पर. समय भी बचेगा और सेहत का भी भला होगा.

वाक़ई?

क्या फलों का रस निकालकर पीना वाक़ई सेहतमंद है?

आज कामकाजी लोगों के बीच फलों का रस पीने का बहुत चलन है. व्यस्तता के बीच चबाकर खाने के लिए वक़्त जो नहीं है.

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तो, सुबह-सुबह जूस गटका औऱ काम पर लग गए. सेहत की फ़िक्र भी दूर हुई. बहुत से लोग तो ये भी दावा करते हैं कि जूस आप के शरीर को डिटॉक्स भी करते हैं.

इन्हीं बातों का फायदा फलों के जूस का कारोबार करने वाले उठा रहे हैं. 2016 में ही दुनिया मे फ्रूट जूस का कारोबार 154 अरब डॉलर का हो चुका था और ये तेज़ी से बढ़ रहा है.

लेकिन इससे हमारी सेहत को कितना फ़ायदा होता है?

ज़्यादतर जूस में फ्रक्टोज़ होता है
चीनी का ये क़ुदरती रूप होता है, जो कमोबेश हर फल में पाया जाता है. इसे नुक़सानदेह नही माना जाता. अगर आप इसे संतुलित रूप से लेंस तो. असल में जब हम फल खाते हैं, तो इस में मौजूद फाइबर भी फ्रक्टोज़ के साथ हमारे शरीर में जाते हैं. इन्हें तोड़ने और ख़ून मे घुलने में वक़्त लगता है.

लेकिन, जब हम फलों रस लेते हैं, तो फ़ाइबर अलग हो जाता है. सिर्फ फ्रक्टोज़ और कुछ विटामिन ही उस में रह जाते हैं, जो हमारे शरीर में जाते हैं. ब्रिटेन की डायबिटीज़ के लिए काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था से जुड़ी एम्मा एल्विन कहती हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन रोज़ाना 150 मिलीलीटर जूस या 30 ग्राम चीनी लेने की सलाह देता है.

जब हम फलों का रस लेते हैं, तो फ्रक्टोज़ तेज़ी से हमारे ख़ून में घुल जाता है. ख़ून में अचानक चीनी की मात्रा बढ़ती है, तो हमारा अग्न्याशय इंसुलिन नाम का हारमोन छोड़ता है, जो चीनी की मात्रा को नियंत्रित करता है.

ऐसा अगर लगातार होता है, तो लोगों को टाइप 2 डायबिटीज़ होने की आशंका बढ़ जाती है. 1986 से 2009 के बीच एक लाख लोगों पर हुए रिसर्च के मुताबिक़, लगातार फलों का रस लेने का सीधा ताल्लुक़ टाइप-2 डायबिटीज़ से पाया गया है.

फलों के रस और टाइप-2 डायबिटीज़ के बीच ताल्लुक़ साबित करने वाला एक और रिसर्च भी हुआ था, जो 70 हज़ार लोगों के बीच 18 साल तक किया गया था. जानकार कहते हैं कि फलों का रस तेज़ी से हमारे शरीर में घुल जाता है. इसलिए चीनी की मात्रा अचानक बढ़ जाती है.

अगर फलों के जूस में सब्ज़ियों की कुछ तादाद भी मिली हो, तो ये फलों के रस के मुक़ाबले ज़्यादा बेहतर होगा. हालांकि फ़ाइबर इनमें भी नहीं होता. मगर, ये हमारे ख़ून में देर से घुलेंगे, तो चीनी की मात्रा अचानक से नहीं बढ़ेगी.

ज़्यादा जूस नुक़सानदेह होता है
बहुत से रिसर्च ये कहते हैं कि अगर फलों का रस ज़्यादा मात्रा में लिया जाए, तो इससे मोटापा बढ़ने का भी डर रहता है.

असल में इस में मौजूद फ्रक्टोज़ की मात्रा ज़्यादा होने पर हमारे शरीर को ज़रूरत से ज़्यादा कैलोरी मिल जाती है.

कनाडा की टोरंटो यूनिवर्सिटी के जॉन सिवेनपाइपर ने 155 रिसर्च का निचोड़ निकाला, तो उन्होंने पाया कि फ्रूट जूस और चीनी मिले दूसरे सॉफ्ट ड्रिंक्स में कैलोरी के मामले में ज़्यादा फ़र्क नहीं होता. जैसे कॉर्न सिरप या शहद. इनमें काफ़ी मात्रा में कैलोरी होती है. इन्हें ज़्यादा लेने पर वज़न कम करने का एजेंडा पटरी से उतर सकता है.

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हालांकि अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानक यानी रोज़ाना 150 मिलीलीटर जूस लेने पर इसका नुक़सान नहीं होता. सिवेनपाइपर का रिसर्च कहता है कि फ्रक्टोज़ वाले फलों के रस को नियमित रूप से लेने पर ख़ून में चीनी की तादाद संतुलित रहती है. शर्त ये है कि इसे रोज़ाना 150 मिलीलीटर से ज़्यादा न लिया जाए.

सिवेनपाइपर कहते हैं, 'फलों के जूस के मुक़ाबले फल खाना सेहत के लिए बेहतर है. लेकिन, अगर आप फलों और सब्ज़ियों के साथ थोड़ा सा जूस लेते हैं, तो ठीक है. ध्यान रहे कि जूस को पानी की जगह पीना आप के लिए ख़तरनाक है.'

जूस में ट्विस्ट
पिछले साल छपे एक तजुर्बे के आधार पर हम फलों के जूस को सेहतमंद बना सकते हैं. जो सामान्य जूसर होते हैं, उनकी जगह पोषक तत्व निकालने वाले ब्लेंडर का इस्तेमाल कर के जूस निकाला जाए, तो इसमें कुछ बीज और फाइबर रह जाएंगे. इस तरह से तैयार जूस नुक़सान नहीं करेगा.

लेकिन, ये तजुर्बा बहुत सीमित पैमाने पर किया गया था. इसलिए अभी इस दिशा में और रिसर्च की जानी चाहिए.

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ब्रिटेन की प्लाईमाउथ यूनिवर्सिटी में पोषण की विशेषज्ञ गेल रीस कहती हैं कि, 'इस रिसर्च में जो जूस निकाला गया, उसमें फलों के बीज और छिलके भी थे, तो, हम इस पर पक्के तौर पर भरोसा नहीं कर सकते.

बेहतर होगा कि हम 150 मिलीलीटर रोज़ाना की मियाद पर क़ायम रहकर फलों का रस लें. इससे शरीर में चीनी की मात्रा संतुलित रहेगी. जब जूस में थोड़े रेशे होते हैं, तो ये देर से ख़ून में घुलता है. लेकिन, ज़्यादा तादाद में जूस लेना फिर भी हानिकारक ही है.'

हम जूस निकालने के लिए पका फल लें, तो ये और बेहतर होगा. वैसे हर फल की अलग तासीर होती है. जैसे कि अंगूर को ही लें. इसका जो बीज होता है, उसमें कई अहम अवयव होते हैं, न कि गूदे में. वहीं संतरे के बहुत से पोषक तत्व इसके छिलके में होते हैं.

जूस पीने से डिटॉक्स नहीं होता
बहुत से लोग जूस इसलिए लेते हैं कि इससे शरीर में जमा कचरा साफ हो जाएगा. ये शराब, ड्रग या दूसरी नुक़सान करने वाली चीज़ों की वजह से हमारे शरीर में जमा होता है.

लेकिन, जानकार कहते हैं कि जूस पीकर डिटॉक्स करने की सोच हास्यास्पद है. हमारा शरीर ख़ुद को डिटॉक्स करना जानता है. इसलिए जूस गटकने की ज़रूरत नहीं है.

जूस से ही सारे पोषक तत्व मिल जाएं, ऐसा भी नहीं है. कई बार जूस विटामिन मिले चीनी के घोल से ज़्यादा कुछ नहीं होते. फलों के दूसरे हिस्सों में भी पोषक तत्व होते हैं, जो जूस निकालने के दौरान अलग हो जाते हैं.

लोग, दिन में पांच बार फल और सब्ज़ियां खाने की सोचते हैं. उन्हे समझना होगा कि फलों और सब्ज़ियों से केवल विटामिन नहीं हासिल होता. इससे हम कार्बोहाइड्रेट खाने की मात्रा भी घटाते हैं.

तो, कुल मिलाकर ये कहें कि रोज़ाना 150 मिलीलीटर जूस लेते हैं, तो ये नुक़सान नहीं करेगा. फिर भी, बेहतर ये हो कि फलो को खाया जाए, न कि उनका जूस निकालकर पिया जाए.

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