TRAI ने कहा, फोन की घंटी कितनी देर बजे, इसपर फैसला होना चाहिए
ट्राई. दूरसंचार नियामक प्राधिकरण. आसान भाषा में समझें तो वो संस्था जो देश में टेलीकम्यूनिकेशन को रेगुलेट करती है. उसने एक सलाह मांगी है. सभी टेलीकम्यूनिकेशन सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों से. पूछा है कि फोन की घंटी कितनी देर बजनी चाहिए. क्यों न, 20 सेकेंड, 30 सेकेंड या 40 सेकेंड की एक तय समय-सीमा कर दें. अगर उसके अंदर कॉल रिसीव न हो तो अपने आप डिस्कनेक्ट हो जाए. साथ ही ट्राई ने इस बात पर भी विचार मांगे हैं कि क्यों न कस्टमर्स को ही इस बात का अधिकार दे दिया जाए कि वे अपने हिसाब से टाइम ड्यूरेशन सेट कर लें
कॉल रिंग ड्यूरेशन. यानी कि वो समय जब तक आपके फोन की घंटी बजती है. जैसे ही फोन की घंटी बजती है. कई सारे लोग तुरंत रिसीव कर लेते हैं या रिजेक्ट कर देते हैं. लेकिन कई सारे लोग तुरंत जवाब नहीं देते. ऑफिस में कोई ज़रूरी काम कर रहे होते हैं या ड्राइव कर रहे होते हैं. ऐसे में तुरंत कॉल रिसीव होना संभव नहीं होता. और फोन की घंटी खुद बजकर चुप हो जाती है. मोबाइल नेटवर्क्स का ट्रैफिक टाइम और लोकेशन के हिसाब से बदलता रहता है. कई लोकेशन पर ट्रैफिक घना होता है और कई लोकेशन पर नहीं होता. अब ऐसे एरिया में जहां ट्रैफिक घना नहीं है वहां कॉल रिंग ड्यूरेशन घटाकर नेटवर्क रिसोर्सेज बचाने का कोई फायदा नहीं है.
क्यों चाहिए फिक्स कॉल ड्युरेशन लिमिट
जितनी देर हम सामने वाले की घंटी बजाते हैं उतनी देर तक नेटवर्क हम दोनों के बीच व्यस्त रहता है. इसमें हमारे रिसोर्स लगते हैं. एनर्जी जाती है. जो दिखाई नहीं देती. लेकिन बर्बाद होती है. अगर कॉल पहले ही खत्म कर दी जाए तो ये रिसोर्स बच जाएगी. और टेलीकम्यूनिकेशन सर्विस प्रोवाइडर्स इस सेविंग को किसी दूसरे यूजर के काम में ला सकती हैं. अभी हमारे देश में मोबाइल की घंटी 30 से 45 सेकेंड तक बजता है. जबकि लैंडलाइन पर 60 से 102 सेकेंड तक. अगर मोबाइल पर इस ड्यूरेशन को घटाकर 20 सेकेंड कर दें तो अगले 15 से 20 सेकेंड तक में बर्बाद होने वाला रिसोर्स बच जाएगा.
अगर ड्यूरेशन बढ़ा दें तो
लेकिन खेल केवल इतना ही नहीं है. एक बार कस्टमर्स के नजरिए से देखिए. अगर कॉल जल्दी कट जाएगा तो रिपीट कॉल करेगा. कई बार करेगा. बार-बार करेगा. एक नजरिया ये भी है कि अगर घंटी 20 सेकेंड की बजाय 40 सेकेंड तक चलती तो हो सकता है रिसीव हो जाती. और जब रिसीव करने वाला बंदा अपने फोन पर मिस्ड कॉल देखेगा तो वो कॉल बैक करेगा. अगर एक साथ दोनों एक-दूसरे को कॉल करेंगे तो किसी का कॉल नहीं लगेगा. मतलब रिसोर्स की और बर्बादी. कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि घंटी बजने की समय-सीमा घटाकर जितना सेविंग होगा, उससे ज्यादा ही खर्च हो सकता है. मतलब दांव उल्टा पड़ सकता है. लेकिन अगर कॉल रिंग ड्यूरेशन को बढ़ा दिया जाए तो सर्विस प्रोवाइडर्स का रिसोर्स थोड़ा ज्यादा लग सकता है लेकिन कंप्लीट फोन कॉल मिलने का फायदा हो सकता है. जिसका एक रिजल्ट ये होगा कि दोनों एक-दूसरे को बार-बार रिपीट कॉल नहीं करेंगे.
अगर कस्टमर पर ही छोड़ दें
कई सारे देशों में ऐसा होता है. कस्टमर्स के पास अपने हिसाब से कॉल रिंग ड्यूरेशन चुनने का अधिकार होता है. इंटरनेशनल सर्विस प्रोवाइडर कंपनी जैसे टेलेस्ट्रा और ऑप्टस ऑस्ट्रेलिया में, वोडाफोन यूके में और AT&T अमेरिका में अपने कस्टमर्स को कॉल रिंग ड्यूरेशन सेट करने का अधिकार देती हैं. इसके लिए उन्हें वेबसाइट पर दिए नंबर पर कॉल करना होता है. टेलेस्ट्रा यूजर्स 15 से 30 सेकेंड, वोडाफोन यूजर्स 5 से 30 सेकेंड और AT&T अपने यूजर्स को 6 से 36 सेकेंड्स तक चेंज करने का ऑप्शन देता है.
ट्राई ने इसके लिए सभी सर्विस प्रोवाइडर्स से सुझाव मांगे है. उनसे आंकड़े मागे हैं. बताइए कौन वो सबसे मुफीद ड्यूरेशन है? जिस पर लोग सबसे ज्यादा कॉल रिसीव करते हैं. किस पर कम करते हैं. अलग-अलग लोकेशन्स और अलग-अलग एज ग्रुप के लोगों के हिसाब से आंकड़े मांगे हैं. देखते हैं क्या होता है.
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