क्यों विकसित देशों में घट रहा है टीकाकरण पर यकीन-बीबीसी स्पेशल

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क्यों विकसित देशों में घट रहा है टीकाकरण पर यकीन-बीबीसी स्पेशल

आम जनता का टीकाकरण में घटता विश्वास समाज को जानलेवा बीमारियों से लड़ने के मामले में एक क़दम पीछे की ओर ढकेल रहा है.

टीकाकरण के प्रति लोगों की राय पर किए गए वैश्विक सर्वे के मुताबिक लोगों का इस प्रक्रिया में यकीन कम होता जा रहा है, दुनिया के कई इलाकों में ये बेहद कम है.

वेलकम ट्रस्ट के एक विश्लेषण में 140 देशों के 1 लाख 40 हज़ार से ज़्यादा लोगों की राय ली गई.

ये सर्वे ऐसे वक़्त में आया है जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने टीकाकरण के प्रति लोगों की घटती रुचि को दुनिया भर में स्वास्थ्य के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक माना है.

वेलकम ग्लोबल मॉनिटर के इस सर्वे में विज्ञान पर लोगों का यकीन, स्वास्थ्य से जुड़ी सूचनाएं, लोगों में इसे लेकर समझ कितनी है और टीकाकरण पर लोगों की क्या राय है? जैसे सवाल पूछे गए थे.
 
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वैश्विक सर्वे में सामने आया है कि ज़्यादा संख्या में लोग टीकाकरण में बेहद कम यकीन नहीं रखते.

सवाल पूछा गया कि क्या टीकाकरण सुरक्षित है?

79% (दस में से आठ) लोग इससे सहमत दिखे.
7% लोग इससे असहमत दिखे
14% लोगों ने कहा कुछ कह नहीं सकते
सवाल पूछा गया क्या टीकाकरण कारगर होता है?

84% लोग इससे सहमत थे
5% इससे असहमत
12% लोगों ने कहा कुछ कह नहीं सकते
टीकाकरण ज़रूरी क्यों है?

कई वैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि टीकाकरण किसी भी जानलेवा बीमारी मसलन खसरा से बचने का सबसे कारगर तरीका है.

टीका दुनिया भर के अरबों लोगों की रक्षा करते हैं. आज दुनिया चेचक से छुटकारा पा चुका है, इसके अलावा टीका से ही हम पोलियो जैसी अन्य बीमारियो से छुटकारा पाने के बेहद करीब हैं.

लेकिन खसरा जैसे कुछ रोगों के मामले दोबारा बढ़ रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि लोग टीकों से परहेज करते हैं, लोगों के बीच डर और गलत सूचना इसका बड़ा कारण है.

डब्लूएचओ में टीकाकरण के विशेषज्ञ डॉ. एन लिंडस्ट्रैंड कहते हैं, ''मौजूदा स्थिति बेहद गंभीर है. टीके से लोगों के बीच हिचकिचाहट दुनिया के कई हिस्सों में वैक्सीन के जरिए रोकथाम योग्य बीमारियों को नियंत्रित करने में बाधा डाल रही है.

''इन बीमारियों में जो बढ़त दिखाई दे रही है वो हमें पीछे की ओर ढकेल रही है जो हमें कतई मंजूर नहीं होना चाहिए.''

खसरा रोग की वापसी

ऐसे देश जो खसरा को खत्म करने के करीब थे अब वहां इसका बड़ा प्रकोप ​​देखा जा रहा है. 2016 के मुकाबले 2017 में खसरा का केस दुनिया के लगभग हर क्षेत्र में 30% बढ़े हैं.
Image captionदुनिया के देशों में खसरा के कितने मामले सामने आए हैं.

किसी भी कारण से टीकाकरण नहीं करने का निर्णय, दूसरों के साथ-साथ स्वयं को भी संक्रमित होने का ख़तरा पैदा करता है.

यदि पर्याप्त लोगों को टीका लगाया जाता है, तो यह बीमारी को आबादी में फैलने से रोकता है.

वेलकम ट्रस्ट के इमरान खान कहते हैं, "हम इस समय वास्तव में चिंतित हैं क्योंकि खसरे के लिए 95% से कम लोगों का टीकाकरण होने से इसका प्रकोप बढ़ सकता है. ''

ख़िर टीकाकरण पर क्यों लोगों का यकीन हो रहा है कम?

ज़्यादातर लोग मानते हैं कि टीकाकरण एक सुरक्षित उपाय है

कई समृद्ध इलाकों में रहने वाले लोगों को टीकाकरण की सुरक्षा के बारे में ठीक से नहीं पता है.

यूरोपीय देश फ़्रांस में खसरा के मामले तेज़ी से बढ़े हैं. इस देश में तीन में से एक का मानना है कि टीकाकरण सुरक्षित नहीं है. ये आंकड़े दुनिया भर के सभी देशों के मुकाबले काफ़ी ज़्यादा हैं.

फ़्रांस में 19 फ़ीसदी लोगों का मानना है कि टीकाकरण फ़ायदेमंद नहीं है , 10 फ़ीसदी लोगों का मानना है कि बच्चों का टीकाकरण करना ज़रूरी नहीं है.

फ्रांस सरकार ने पहले से चल रहे तीन टीकों में आठ नए टीके जोड़े हैं जो बच्चों को लगवाने अनिवार्य होंगे.

इटली में 76 फ़ीसदी लोगों का मानना है कि टीका लगवाना सुरक्षित है. घटते टीकाकरण की दरों के बीच यहां सरकार ने एक कानून पारित किया है जिसके तहत उन बच्चों को बैन किया जाएगा जिनका टीकाकरण नहीं हुआ, साथ ही ऐसे बच्चों के परिजनों पर भी फाइन लगाए गए.

अमरीका में भी खसरा रोग के मामले बढ़ रहे हैं. पिछले दशकों में खसरा के मामलों ने रिकॉर्ड तोड़ दिया है, साल 2019 में 26 राज्यों में 980 मामले सामने आए.

उत्तरी अमरीका, दक्षिणी और उत्तरी यूरोप में 70 फ़ीसदी लोग मानते हैं कि टीकाकरण सुरक्षित है. पश्चिमी यूरोप में यह आंकड़ा 59% और पूर्वी यूरोप में 50% है.

यूक्रेन, जहां पिछले साल पूरे यूरोप में खसरे के सबसे अधिक मामले (कुल 53,218) सामने आए, यहां केवल 50% लोग इस बात से सहमत हैं कि टीके प्रभावी होते हैं. यह आंकड़ा बेलारूस में 46%, मोल्दोवा में 49% और रूस में 62% है.

जहां टीकों ने किया कमाल

कई कम आय वाले इलाकों में रहने वाले लोगों का मानना है कि टीकाकरण सुरक्षित है. इनमें सबसे आगे रहा दक्षिण एशिया, जहां 95% लोगों का मानना है कि टीके लगवाना प्रभावी है. दूसरे स्थान पर पूर्वी अफ़्रीका है जहां ये आंकड़ा 92% है.

बांग्लादेश और रवांडा में लोगों को शारीरिक रूप से टीके लगवाने में कई चुनौतियों के बावजूद यहां टीकाकरण दर काफ़ी ज्यादा है.

रवांडा दुनिया का पहला कम आय वाला देश बन गया है, जहां हर महिला के पहुंच के अंदर है - एचपीवी वैक्सीन. ये वैक्सीन महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर से बचाती हैं.

इमरान खान कहते हैं, ''यह दिखाता है कि टीके के सुधार के लिए ठोस प्रयास के साथ कुछ भी हासिल किया जा सकता है.''

क्यों टीका को लेकर हो रहे हैं लोग कंफ़्यूज़

सर्वे के मुताबिक वैज्ञानिकों, डॉक्टरों और नर्सों में अधिक विश्वास रखने वाले लोग इस बात से सहमत होते हैं कि टीके सुरक्षित हैं. वहीं इसके विपरीत, जो लोग विज्ञान, चिकित्सा या स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारियों के मामले में नए हैं उनके इससे सहमत होने की संभावना कम होती है.

वेलकम की ये रिपोर्ट लोगों के बीच टीकाकरण को लेकर घटते यकीन के पीछे के सभी कारणों के बारे में जानकारी नहीं देती. लेकिन शोध करने वाले मानते हैं कि इसके पीछे कई फैक्टर काम करते हैं.

हर दवा, टीका के कुछ साइड इफेक्ट होते हैं, लेकिन ये टेस्टेड और प्रमाणित है कि टीकाकरण फायदेमंद है.

इंटनेट पर कई लोग अपनी धारणा, टीका को लेकर अपने संदेह साझा करते है, ये सूचनाएं तेज़ी से फैलती हैं लेकिन ये तथ्य पर आधारित नहीं होतीं.

जापान में, एचपीवी वैक्सीन के बारे में चिंताएं जताते हुए एक रिपोर्ट लिंक को व्यापक रूप से प्रचारित किया गया था, विशेषज्ञों का मानना ​​है कि ये टीकाकरण में लोगों के विश्वास को कमज़ोर करता है.

इसी तरह, फ्रांस में, एक महामारी इन्फ्लूएंजा वैक्सीन के बारे में विवाद सामने आया. आरोप है कि यह बेहद जल्दी बनाया गया इसलिए सुरक्षित नहीं हो सकता है. ब्रिटेन में एमएमआर और ऑटिज्म के बारे में भी गलत सूचनाएँ फैलाई गई हैं.

डॉ. लिंडस्ट्रैंड कहते हैं, "टीकों के बारे में संदेह और चिंताओं से निपटने के लिए सबसे महत्वपूर्ण तरीकों में से एक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को वास्तव में अच्छी तरह से प्रशिक्षित और सक्षम करना है, ताकि वे वैज्ञानिक तथ्यों पर टीकाकरण की सिफारिश कर सकें, और माता-पिता के सवालों और चिंताओं का सही जवाब देने में सक्षम हों

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